साहित्यिक निबन्ध | Sahityik Niband

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Sahityik Niband by कृष्णलाल हंस -Krishnlal Hans

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छिह्दी गा उद्‌मम धौर विकास ] (७ पएकाइस से पंच्रदह विक्रम साक अनद। विष्धि रिपुजय पुरदरन को भय प्रपिराश नरिस्द॥ शाही बोली का दिशसित रूप हमें प्मीर सुसरो की रचताप्रों में मिलता है। घमीर शरूसरो का समय सन्‌ १२१५४ हे १३१४ ईस्बी तक माना जाता है। लुसरो को करता में सड़ी बोसौ का दिश्सित कप देतफर ऐसा जाग पहता है कि द्वि्ठी का |जिकास छह्टी बोहो के रुप में छुमरों के पह्धिस ही भारंम हो गया था 1 इत इसकी रभना में ब्जमापा का भी प्रयोग दैसते है. परत इस भाषा के विकास के संशंध में भी बही बात कड़ी जा सफतो है। २. मध्य फाख पैद्रहुबी शवाम्दी से भ्रदारहीं राताम्री तक था समय मध्य गान के प्लस है । हुस्शे। शापा के माहिए्यड शूए से यह शएद्र हुम्दा साहिए्य का स्गएण बाछ बहा जता है। इसी काप्त में क्लुंददी $ प्रदपी प्ोौए बजमापा हर्पो क्र विकस बिरोप हप से हुपरा । घ्स काप्त में बिशेष रूप से भवित साहितय थो रबना हए। एग काप्त में सब प्रथम माफप॑बी धाहित्प हमार शामस प्राया है। यह इस सम्प्रदाय है मद-सार्थों द्वारा रबजित साहर्प पा । इसमें मिपुर्णभारी साहित्प वी प्रबामठा री । इस शाहि!ब में पृद्दीद मापा खड़ी बोत्ती गा भ्रारंफ्रेक प्‌ ही समम्य जाता चाहिए | एतक्े परषात्‌ सत कमि एष प्रम्प एन कंबियों के प्ाह्टिय के कप में द्विदौ भाषा का विष्रास हृप्ा थो हिट शादिय के इतिहाए मं मियुष बारा के बर्बियों के माम से प्रधिद है। इसी छमप महाराष्ट्र के सत बबि सापदेप ने सह्ठी बोली में शपा विधापति मे इिन्दी के एक शिप्त शुप मैंडिपी भाषा में काप्य एचना की। दबार धारा भ्रमूत तिर्गुय ब्ाष्य बारा वा हिप्दी में दित्ास हो ऐ सएटादा हि एए धूसरौ कास्प्रपारा गा गूतबपास प्रममार्गीय सूप शरदियों ले दिया ( यह शाण्पपारा “ेशमार्गोप बाध्य पारा के हाम में प्रसिद्ध हैं। पपि एस भाइर धारा के प्रपम बड़ि युस्‍्ता डाऊत ये तद्पि इसका सर्वापिक् बितरास मसझ मम़्म्बद जायगो है “पदुझाजत में ही हुपा। दंग धारा कै भररियों के बास्य मे घवपरीका धरामनीय स्तिस हुप्रा। लिगुए पाए वे बरिएों ने शिंग भाषा का प्रयोग रशिएा है, बहू एक दिए मादा है. रिम्यु रखयें हुई श्री बाली था ही हंप प्रमुख सै मिलता हैं, गिस पर इजमादा था प्रभाव है। इसके परचाश णिरो बा विधा सदु् भार के माहिप्य में शितेत रूप ते एुपा। हद प्रएम मणर्दि घृरशस वृधा बाध्य? को सेबर एक घायत प्रलिसा है सा टिररी बाम्सत्साटिप्य के प्रांपय मैं प्ररत्दा हुए। इतप्े तदा प्रसय दृष्षानास्य है रचदिता ब वर्यों रड्माण टिस्टी व इृंशजाशज्ज्य का शिर्म चरम सौणा को




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