भारत में राज्य प्रशासन | Bharat Men Rajya Prashasan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
324
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भारतीय राजनीतिक एवं प्रशासनिक व्यवस्था में 'राज्य” का स्थान 85
वस्तुतः राज्यपाल की नियुक्ति ही मनमानीपूर्ण रही है। राज्यपाल की नियुक्ति से
पूर्व सम्बन्धित राज्य के मुख्यमंत्री से सलाह लेने की परम्परा का निर्वाह अधिकांशत: नहीं किया
जावा। राज्यपाल ने यदि केद्र के निर्देशानुसार काम नहीं किया तो समय पूर्व हटा दिया गया !
ग्रज्यपालों का प्रयोग राज्य में विपक्ष की सरकारों को अलोकतांत्रिक तरीके से गिरने के लिये
किया गया। राज्यपालों को इसीलिये कतिपय सूत्रों में केद्ध का 'एजेन्ट' कहा गया है। माना
कि सभी राज्यपालों के सम्बन्ध में यह आश्रेष उचित नहीं है, किन्तु फिर भी यह स्पष्ट है कि
कई बार राज्यपातों ने केद्ध के राजनीतिक दबावों में जो निर्णय लिये उससे उनके पद की
गरिमा पर आँच पहुँची है।
गज्यों में केद्र द्वारा अर्ड-सैनिक बलों का प्रयोग व उसकी पद्धति भी शिकायत का
बड़ा कारण रही है। सामान्यतः अर्द सैनिक बलों का प्रयोग राज्य की प्रार्थना पर राज्य में शांति
बहाल करने के लिये किया जाता हैं लेकिन व्यवहारत: इसका प्रयोग केद्ध ने मनमाने तौर पर
किया। 1968 में केद्ध सरकार के कर्मचारियों के हडताल पर जाने पर केद्धीय सुरक्षा बलों को
केरल में तैनाव किया गया जिसका वहाँ के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री ईएम/एस. नम्बूद्रीपाद ने
विरोध किया। 1968 में पश्चिमी बंगाल के गृहमंत्री श्री ज्योति बसु ने भी बिना आवश्यकता
के तथा प्र्थना के केद्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती पर आक्रोश जाहिर किया था।* इन
शिकायतों से बचने के लिये कानून व व्यवस्था को समवर्ती सूची में शामिल करने के बरे में
गंभीरता से विचार होने लगा। आपातकाल में 42वें संविधान संशोधन द्वारा केद् को अधिकार
प्राप्त हो गया था कि वह केद्धीय सुरक्षा बल तथा सीमा सुरक्षा बलीं को देश में कही भी तैनात
कर सकता है। यद्यपि केद्रीय सरकार इस अधिकार का प्रयोग सामान्यतया सम्बन्धित राज्य
सरकार से विचार-विमर्श के पश्चात् ही करती है।
संघ द्वारा अनुच्छेद 356 का यानि राज्यों में राष्ट्रपति शासन लागू करने के अधिकार
का प्रयोग मनमाने व असवैधानिक तरीके से किया गया है। वस्तुतः राज्यों की विशेधी दलों
को सरकारों को गिराने के लिये इस संवैधानिक प्रावधान का दुरुपयोग किया गया 1 अब
तक एक सौ से भी अधिक बार राज्यों में राष्रपति शासन लागू किया जा चुका है। राजस्थान
में अब तक चार बार चुनी हुई सरकारों को गिराकर राष्ट्रपति शासन लागू किया जा चुका हैं।
1984 में आम्ध्र प्रदेश में रामाराव सरकार, 1987 में पंजाब में सुरजीत सिंह बरनाला सरकर,
1991 में तमिलनाडू में करणानिधि सरकार को बर्खास्त करके राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया
गया। दिसम्बर; 1992 में इकट्ठे राजस्थान, मध्यप्रदेश व हिमाचल प्रदेश की सरकारों को
गिराना अपने आप में इतिहास है यद्यपि ऐसा नहीं है कि अनुच्छेद 356 का उपयोग हर समय -
गलत ढंग से ही किया गग्मा हो । पंजाब तथा कश्मीर में इसका उपयोग सुरक्षा आवश्यकवाओं
ने राजनोतिक स्थिरता के लिये किया गया है। किन्तु एक आवधान का कई बार दुरुपयोग
उसके प्रति शंका पैदा कर हो देता है। इसी कारण 1998 के संसदीय चुनावों के पश्चात् इस
आंत पर बल दिया जा रहा हैं कि अनुच्छेद 356 का दुरुपयोग बंद कर दिया जाय चाहे इस
हेतु सविधान का सशोधन ही क्यों न करना पड़े। 1999 के आरम्भ में बिहार में कानून एवं
व्यवस्था की समस्या को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रपति शासन की घोषणा को गई, किन्तु राज्य
सभा में इस प्रस्ताव के समर्थन हेतु बहुमत न मिलने की सभावनाओं को देखते हुए, इस घोषणा
को कुछ ही सप्ताह में निरस्त कर दिया गया।
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