आत्मकान्तिप्रकाश | Aatm Kanti Prakash

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Aatm Kanti Prakash by माणकलाल नानाजी - Manakalal Nanaji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पंचतीर्थपूजा । मन शुद्ध साफ कर अपनो गात-जिन० अंचली ॥ सीथंकी महिसा सेरे सन भाई, देख देख मनुवा हुझुसाई । किये जात करसनको घात-जिन० १३ भूत्ति प्रभुकी रसीली दशा चारी, चौद राज ऊपर आधारी। घले जात भवि दिनन रात-जिन० शत कुमारपाल सुंदर जिनमंदर, मूलनायक शॉतिजिन अंदर। घन नर नार जो करत जाव-जिन० ॥ ३ ॥ पदधी अचऊ अचरूगढ पावे, आतम रक्ष्मी अति हर्पावे । चलभ ए जिनमतकी बात-जिन० १॥ (४ ) उल्नय॑तत्तीयपूजा । दोदरा । उजायंत गिरनार है, रेवतकाचल नाम । नेमिनाथ भगवानका, धाम परमपद्धाम ॥ १॥ (पीछ--नरवा-ताऊ केहरवा, नाथ निज नगर देखाढोरे 19) नाथ गिरनारके पूजोरे । सरण है अनाथ-- करो तुम साथ नाथ गिरनारके पूजोरे | अंचली ॥ दीक्षा केबठ मोक्ष ए तीनो, कल्याणक जिन कहियेरे । तीर्थंकर श्रीनेमिनाथ, वत्तमान सिमरियेरे-सरण० १ ॥ आठ नमीख्र आदि जिनवर, गत चोवीसी भजियेरे । भव्य अनेक गिरिसेवासे, शिवपुर सजियेरे-सरण० २॥ सूत्ति रखमयी प्रभुनेमि, इंद्र पाससे रूडयेरे । पैत्य चनावी विधिसे भरते, स्थापन करियेरें-सरण० र॥ चलभी भंगे शक्त भादेशे, काति अंबिका हस्यिरे 1 पंचम आरा अंते सुरपति, रा घरियेरें-सरण० ४॥|




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