जैन चित्रावली | Jain Chitravali

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Jain Chitravali by कस्तूरचन्द जी शास्त्री - Kasturachand Ji Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छ्‌ मेरे हो शब्द पाठकों । आज़ ऐसे प्रिकर समपमें जब कि कार्योलयफै माहि हरा सपर्गवापसत हो गया है, फिर भी हम एक नई चीज लेकर भापके साम्दने आते हैं | जैंन समाजमै यह एक यिछकुल नई चीज हे, ययपि इसका सम्पादनका कार्य सय० बापू साहरकी दस रेखमें चहुन समयसे चल रहा था फिर भी अगर रुय०घा० पन्‍मालालज्ञी रदते तो यह चित्राचद्ली और भी मदत्यपूर्ण द्वोती। ओऔष्म भोर शोत परीपदका डिज्ञाइन हमारे परम प्रित्र बा० छोटेलालजी जैनकी छपासे बाबू साहबकों फोशरिश धन्यबाद है। चित्रपस्चिय पे शातीशचद्रज्ञी प० क्स्तृस्वदज्ीने कई महीने लपातार परिश्रम फरके खोजके साथ लिफनेकी ऊपा की है। इस मददती छृपाफै लिये हम पडितज्ञीऊे हतश हैं। भाशा है भाप भपिप्पमें भी इसी तरद उदारता दियाते रहेंगे | ब्छाक बनानेका फाय हमारे पिश्र दीक्षितज्ञीते अपनी “आइडल हाफटोन ब पन्ती में बहुत शीघ्रतासे उत्तम्रतापूर्वक कर दिया है इसके लिये भी दम उन्हें धन्यवाद दिये बगेर नहीं रह सक्त | अतमें ध्वणिक्‌ प्रेल” के मालिकोंके प्रति भो हम करृतनशता प्रगट करते हुए आशा फरते & कि सविष्यमें भाप इसी तरह हमें सहयोग देते रहेंगे। समच टे भाषोंमें, कही २ भूले हुई दोगीं, इसके छिये पाठक छूपया हमें सूचित करनेका अवश्य द्वी कष्ट उठाव ताकि हितीयाघृत्तिमें टीफ कर दी जाय । निवेद्क-- दीपायली--२४५३ फ्छकत्ता ] नृपे-्द्रऊुमार जेन सेनेजर ६३ क्ः 38 सूः रे श्च्चन्पचक् १--चारुदत्त सेठ और वसतसेना १७--श्रीकृष्गने जपनी उगलीसे गोवर्धन २--चारूदत सेठ सन्यासरीके जालमें पर्यवतकी उठा छिया | व्‌ #. की पएसे निक्‍ब्ल रहे है १८ -- श्री ऊष्ण मधुरा जा रहे षट । ४--भ्री कृष्णकी माताके ७ स्वप्न १६--द्रोपदी सवययर । जे 1 गं ५-अछुदेव कृष्णझ्ो छेफर नदफे घर जा रहे हे। | ;५..२६३-..पाडवोंकी दूत क्रीडा और उनफा ६ बसुदेव कृष्णकों लिये यप्ुनापार कर रदे हैं।।. बनयास | ७-नन्दफे घरफमें क्रीटष्णका मायिभाव | | २२-द्रीपदीपर नारद्का कोप | ८--यसुदेव देयकीको चदुलेकी कन्या दे रहे हे । | २३--श्री रुप्ण झा पतक्रम ६--कस देधकी की सन्‍तानकों पर पकड़कर | २७८ आदोसदाल' | पन्‍्थरपर पछाड रहा हैं । ! २५--भ्रीनेमनाथजीय धिर दैस पूछ रहे हैं। ०--नद॒की स्त्री यशोदाफी गोदर्मे श्रीकृष्ण। | र--परष्प परीपद्द । जे ११-नन्दके घर श्रीक्षष्णका छाटनपाउन «३ शीत परीपद । प्यास्से दो रदा हैं। २८ २६--घसु राजाकी राज्यक्षमा और १२--पूततना बच हि असर्यकाफल । १६--सहस्मद्छ कमल तोडनेके लिये यशोदा ते का क्रो ख्त्यु श्रीरृष्णकों सजा कर भेन्नती हैं। । शैश्-भारुझ ता इत्छ। १७--धीरण्णने सदस्तदछः कमल तोड़कर | ३१-३३--अष्ठ कर्म चित्रायली | क मागको चशमें किया | | ३४-३६--अष्ट कम चित्रायकी ।




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