उदबोधन स्वयं को | Udabodhan Svayam Ko

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Udabodhan Svayam Ko by श्री शान्ति मुनि - Shri Shanti Muni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वह पौधा घृज उठा । उसका पत्ता-पत्ता थर्रा उठा । वह भय से प्रकंपित था । वैज्ञानिको ने सिद्धान्त निकाला--वनस्पति में भी भय है, सभा है, जीने की अभिलाषा है, हषे हैं, विषाद है । जो सिद्धान्त तीर्थकरो ने हजारो व पूर्व प्रतिपादित किये, उनको कुछ अंश में विज्ञान अब महसूस करने लगा है । एक हम है जो हमारे ही दर्शन से अपरिचित होते जा रहे है । सहामत्र-अबृझ्ष प्रभाव : नवकार मंत्र एवं विचार तरंगों का प्रभाव बताने वाली एक साक्षात घटना है! | ग्रुजरात में उका भगत रहता था, जो मात्रिक था, ज्योतिषी था और सत्यवादी था। वह भविष्य का कथन करता था इसलिए भविष्य जानने वालों की भीड उसके मकान के सामने लगी रहती थी । रास्ते में भीड थी एक भाई श्रीकान्त अपने मित्र दिव्यकान्त की बरात में जाने हेतु घर से निकले । वे स्टेशन पर जाने वाले थे। भीड में से बाहर निकलने की गुजाइश नही थी । उका भगत ने श्रावाज लगायी “भाइयो दूर हट जाओ, रास्ता दो, यह भाई अपने मित्र की अर्थी में जा रहे है श्रीकान्त भीड से बाहर तो आ गया लेकिन क्रोध से भर उठा था । मित्र के घर पहुचा । मित्र का अचानक देहान्त हो गया था । विवाह की बारात अर्थी की वारात बन गयी । श्रीकान्त उस उका भगत से मिलने के लिए बेताब बना. हुआ उका भगत के चरणों में पडा और कहा “आपको यह ज्ञान कैसे प्राप्त हुआ ? में भी यह विद्या सीखना चाहता हू ।” उका भगत ने कहा--यह साधना तुम्हारे लिए कठिन है । इस साधना में तुम टिक नही पाओगे | श्रीकान्त के अत्याग्रह और श




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