दर्द की मुस्कान | Dard Ki Muskan

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Dard Ki Muskan by राजेन्द्र कुमार शर्मा - Rajendra Kumar Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२५- अपराधी से पूछता है, उसने कहा--/मैं पूछती हूं, यह सब कया है ?* । 'आप यह बैठकर भी पूछ सकती हैं।” 'मैँ नही बैठूगी ।--लूसी ने एलान करते हुए कहा ! ततो मुझे भी खडा ही रहना पड़ेगा /' 'मैं पूछती हूं कि आपने यह सब क्या लिखा है ? इसे जरा पढ़िए ।' 'मैंने तो लिखा है, इसलिए मुझे पढने की जरूरत नही । आपने पढ़ लिया है ?' “आपको यह लिखने की क्या झ रूरत थी और आपको क्या अधिकारः है? अधिकार की बात छोड़िए। आप यह वताइए कि यह सच है या नही ।' 'नहीं।' अनिल थोडा-सा हंस दिया और फिर ब्यंग करते हुए बीला--'आप सच्चाई मे भवराती है । आप वास्तविकता से डरती हैं ।' “आपने लिखा है कि मेरे नृत्य में वस्त्त और कला की कमी होती है, लेफिन न्न्ब्र अनिल फिर उसे दोकता हुआ बोला--क्या ये सच नही है ? आप अपने दिल से पुछिए | अपना मन टटोलिये और फिर बताइये, क्या यह्‌ कला है ? क्‍या यह हुनर है ? लूसी चुप हो गई और कुर्सी पर बैठ गई । कुछ क्षण के वाद उसने फिर प्रश्न किया--'आपने वह फोटो कहा से लिया ?' 'आप जब इस तरह सैकडों आदमियो के सामने नाचती हैं, वो कोई भी फोटो ले सकता है।' “लोग जो चाहते हैं, मैं वही उन्हे देती हू । वो मेरी हसी की खिल- जिलाहट सुतनता चाहते हैं, वो मेरे शरीर का आकर्षण देखना चाहते है। उन्हे मेरे होठों की लाली और आखो का कजरा अच्छा लगता है। मै उन्हें वही देती हू । “मैं उन्हें बताना चाहता हू कि इस बहार के नीचे एक ज्वालामुयी है। इस जिले हुए फब्वारे के नीचे विजली है ।'




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