यतीन्द्रजीवनचरितम् | Yateendra Jivan Charitam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
264
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२् विज्ञापन
८-८ हल या 1 और होम मे इन $ ही विल
दशोन पाया । झ्ौर लोगों से इन के शलीकिक
प्रभावों की वर्णना सुनी । तब लागें के वर्णन की
बड़ी सावचानी से जांच अपने मनसे करता रहा ।
त में यतीन्द्र श्री १९८भास्करानन्द जी महाराज |
के सब घकार पर्ण महात्मा पाथा ॥
आपयः ऐसेही लेशदेख पड़ते हैं जे कुछ नकुछ
गृहस्थ का आसरा चअवश्य रखते हैं । जिसने जिस
से कुछ आसरा किया वह उस से उस बात में अ- हे
वश्य न््यून है तो प्रणेता उस में कहां हे! सकती है। ॥#
परन्तु उक्त श्री यत्तीन्द्र जी तो देहामिमान त्यागपू-
ब्रेक कौपोन तक तज चुके हैं वर सब से एक भाव
से बत्तते हैं।इतने ही से आप लेग जान सकते हैं
कि थे ग्रतोन्द्र जी किसी का आसरा नहीं रखते ॥
ओर जे लाग उक्त महाराज केः असंन्न करने के
लिये महाराज की मूर्ति छोर रुतोत्र ध्पादि रच रहे हैं
यह सब इसी अकार का है जेसे सूर्य नारायण यह
नहीं कहते कि तुम हमारी प्रजा करे या हमारी
ध्यारती करे। तो हम में मकाश बढ़े पर मन॒प्यमात्र
| के चित्त काथचमे है कि जिसे वह जितना पृर्ण सम-
'आ| भताहे उसका उत्तनाही मान करता है औरप़जता है।
| ५ इसी भकार सत्तीन्द्रजी की प्रेरणा के बिना हो, लछेग
<1 अपने सन से सेवा कर रहे हैं। और जिसने ऊपने
४) शरीर में देहामिमान छोड़ दिया है वह दुसरे के
<॥ देह से किये जाते हुए कमा का क्यों विधि निषेध
कस्कक्क्क्क कक कफ्ककक्ाक्क्क््क्ष्क्क्क्क््क्ज््क्ज््क्त् ड़
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