संस्कृत साहित्य का इतिहास भाग - 2 | Sanskrit Sahity Ka Itihas Bhag - 2

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Sanskrit Sahity Ka Itihas Bhag - 2 by जवाहिरलाल जैन - Javahirlal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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साहित्य ग्रन्थों के विषय हैं । रस का कुछ विशेष विवेचन रुद्रट ने ही किया है। भामह और दण्डी ने अलक्लारों के अन्तर्गत रसों का दिग्दशन मात्र कराया है और वामन ने सव्वेथा नहीं । ( ई ) आचाये मम्मट के काव्यप्रकाश, पण्डितराज के रस्गज्ञाधघर और जयदेव के चन्द्रालोक आदि में दृश्य-काव्य को छोड़ कर सभी विषय हैं । रसगल्लाधर में गुणीभूत व्यज्ञय का लक्षण मात्र है । ( उ ) धनज्य के दशरूपक में केवल दृश्य-काव्य का, रद्धभट्ट के खज्ारतिलक में और भानुदत्त की रसमजरी आदि में केवल रस का, उद्धट के काव्यालझ्लारसारसंग्रह में, रूयक के अलझ्भार- सववेस्व में, अप्पय्य के कुबलयानन्द और चित्रमौमांसा में केवल अलझ्षार का विषय है । ( ऊ ) वनिकार और श्री आनन्दवर्धनाचाय के ध्वन्यालोक में दृश्य- काव्य को छोड़कर प्रायः सभी विषय हैं किन्तु प्रधानतया ध्वनि सिद्धान्त का ग्रतिपादन है । ( ऋ ) कुन्तक के वक्रोक्तिजोवित में प्रधानतया वकोक्ति सिद्धान्त का सस्‍्थापन, महिमभट्ट के व्यक्तिविवेक में ध्वनि सिद्धान्त का खण्डन और मुकुछ की अभिषाद्षत्तिमात्रिका में तथा अप्पय्य के ब्त्तिवातिक में केबल अभिधा आदि शब्दजृत्तियों का विवेचन है । साहित्य के इन विषयों का अब कमशः स्पष्टीकरण किया जाता है ।




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