सती शिरोमणि वसुमति अपर नाम सती चन्दनबाला | Sati Shiromani Vasumati Apar Naam Sati Chandanbala

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Sati Shiromani Vasumati Apar Naam Sati Chandanbala by जवाहिरलाल जैन - Javahirlal Jainहुक्मीचंद जी -Hukmichand Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१७ पिचाह या धगचर्य को सुनाये । वसुमति के विचार सुन कर, धारिणी बहुत प्रसन्न हुई | वह, अपने मन में कहने लगी, कि--जिस पुत्री के ऐसे उदार विचार हैं, उसकी माता में! धन्य हूँ। में विचार ही रही थी, कि सेरी पुत्री के द्वारा, मानव-समाज फा कुछ हित हो और बह, सानव-समाज के सामने नूतन तथा उ्र आदर्श रख सके ! जान पढ़ता दै, कि मेरी यह भावना पूर्ण होगी । आजकल संसार में, स्त्री-पुरुप विषयक उलमने चहुत घढ़ रही हैं । यद्यपि सत्री- पुरुष का सहयोग-सम्बन्ध, सांसारिक-जीवन सुख-पू्ेक बिताने के लिए होता है, लेकिन 'आजफल जैसे यह, उद्देश्य विस्मत कर दिया गया है और सांसारिक-जीवन, सुख-पूर्वक बिताने के बदले, उलसनदार बना लिया गया है। वसुमति के विचारों से जान पढ़ता है, कि वह, इस प्रकार की उलमलनों को मिटात्रेगी । लेकिन क्या पता है, कि वह, कैसे पुरुष के साथ विवाद्दी जावेगी, और उसको स्वयं की भावना, कारये रूप में परिणत करने का अवसर , भी मिलेगा, या नहीं | कोई ऐसा मार्ग हो तो अच्छा है, जिससे , चमझुमति की भावना भी कायोन्विद दो, उसका, जीवन भी .सुख- : पूर्वक बीते और मेरा साता चनना भी सफल हो । रात के संमय. महाराजा .द्धिवाहन, धारिणी के महल में : आये ।-उस् समय तक धारिणी, वसुसतिके .ही विषय में अनेक £ अकार के विचार कर रही थी ।.दधिवाहन के आने पर धारिणी बे




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