एतिहासिक जैन काव्य संग्रह की प्रस्तावना | Etihasik Jain Kavya Sangrah Ki Prastavna
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
648
श्रेणी :
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No Information available about अगरचन्द भैरोदान सेठिया - Agarchand Bhairodan Sethiya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्र एतहांसक - जन काव्य सम्मह्
“ चोरादिक सय बारे, सेवक ना कारिज सारे हो [स०1७५1:. /
वंध्या पुत्र समापे, निरधनीयां धन सव आप हो । हंस
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अछगा थी यात्री आधे, देखंतां चरण सहाव हो । स० ७1 . . .
इम अनेक गुणधारो, प्रतित्रोध्या नर ने नारी हो ।८।स० ३
_ अद्ारेसे गुणयासी', 'अपाढ़ दसम! परकासी हो। स० ॥६ | है
| गांम 'गडालय थाप्या, सेवक ना सेकट काप्या हो के
: सांस प्रसाद करायो, देसां में समस सवायो हो | स० 1.११.। -
जंयकीरति'” गुण गाव; मन बंछित पद पाव हो ।स०1९
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सदगुर चरण नमो चितलाय, जिण भेटयां दुख दालिद जाय
आज्ज करो रे ऊछाह सदगुरु चरंण कमल आगे | आ ०। हर
नगर 'हेवे! 'दीपमछ साह, 'दिवलछदे! घरणी जनम्यां सुनाह ।आशी ..
.. संवत् चबदे गुणपचास', 'डेल' नाम दियो शुभ जास | आं०, 1;
योवत् वय आव्यो तिण बार, कीसी सगाई हर्ष अपार । आर . हि
“ जान सन्नाय करो २ तंयार, चलता आव्या 'राडद्रह' वार । आ० | पि के
' पतेहां इक खीमस्थंल सुविशालू,' जां विच सोहे समीय रसाल-1३ 1... .
'तिण ही ठामें उतरी जान, रंग रढी कीना सन््मान | आ० | . 7...
क्रिणे इक ठाकुर वाह्यो बोल, इण पर बरछीं काढे तोछ । भा० :४।॥
देचु पुत्री त्िणे परणाय, ऐसो वचन सुण्यो चितछाय। आ०.। . 5
केल्हे! रो सेवक उछ्यो तांम, काढी बरी छूटा प्राण1आ० । ५1
'डेल्हे! दीठो ए व्िरतंत, सदगुरु बचने भागी अन्त | मां० । हैः न
उसठे' शुभ, संयम लीड्व, ओ “जिनवरघन सूरे' दींघ॥ आा०- ६ | ह हे
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