एतिहासिक जैन काव्य संग्रह की प्रस्तावना | Etihasik Jain Kavya Sangrah Ki Prastavna

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Etihasik Jain Kavya Sangrah Ki Prastavna by अगरचन्द भैरोदान सेठिया - Agarchand Bhairodan Sethiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्र एतहांसक - जन काव्य सम्मह्‌ “ चोरादिक सय बारे, सेवक ना कारिज सारे हो [स०1७५1:. / वंध्या पुत्र समापे, निरधनीयां धन सव आप हो । हंस ५. धश> 5 5 522 फल २७० बने ४० + जे छ अछगा थी यात्री आधे, देखंतां चरण सहाव हो । स० ७1 . . . इम अनेक गुणधारो, प्रतित्रोध्या नर ने नारी हो ।८।स० ३ _ अद्ारेसे गुणयासी', 'अपाढ़ दसम! परकासी हो। स० ॥६ | है | गांम 'गडालय थाप्या, सेवक ना सेकट काप्या हो के : सांस प्रसाद करायो, देसां में समस सवायो हो | स० 1.११.। - जंयकीरति'” गुण गाव; मन बंछित पद पाव हो ।स०1९ 1 का “ ही सदगुर चरण नमो चितलाय, जिण भेटयां दुख दालिद जाय आज्ज करो रे ऊछाह सदगुरु चरंण कमल आगे | आ ०। हर नगर 'हेवे! 'दीपमछ साह, 'दिवलछदे! घरणी जनम्यां सुनाह ।आशी .. .. संवत्‌ चबदे गुणपचास', 'डेल' नाम दियो शुभ जास | आं०, 1; योवत् वय आव्यो तिण बार, कीसी सगाई हर्ष अपार । आर . हि “ जान सन्नाय करो २ तंयार, चलता आव्या 'राडद्रह' वार । आ० | पि के ' पतेहां इक खीमस्थंल सुविशालू,' जां विच सोहे समीय रसाल-1३ 1... . 'तिण ही ठामें उतरी जान, रंग रढी कीना सन्‍्मान | आ० | . 7... क्रिणे इक ठाकुर वाह्यो बोल, इण पर बरछीं काढे तोछ । भा० :४।॥ देचु पुत्री त्िणे परणाय, ऐसो वचन सुण्यो चितछाय। आ०.। . 5 केल्हे! रो सेवक उछ्यो तांम, काढी बरी छूटा प्राण1आ० । ५1 'डेल्हे! दीठो ए व्िरतंत, सदगुरु बचने भागी अन्त | मां० । हैः न उसठे' शुभ, संयम लीड्व, ओ “जिनवरघन सूरे' दींघ॥ आा०- ६ | ह हे




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