समस्यामूलक उपन्यासकार प्रेमचन्द | Samasyamulak Upanyasakar Premachand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ २१ 31 हाहु पै मेंइयो जात होग बिस्तारी! दिल दिस दूले दुझू ईस शत हा हा री।॥ सब्र के ऊपर टिककस बनी ध्राफ़ा प्राई। हा हा| भारत दुदशा त देखी जाई ॥१ अप्रेजो-राम्य मे मारठोय घनता के कोपण का मह सजाब चित्र है। इस बेश दौ सारो सम्पत्ति धीर-बीरे बिटेत पहुँच रही णी। मारतीय जनता प्रायिक प्रमार्थो में बड़ो कड्िताई पते जीबत काट रही थी | इस भपार निभनता कै बीच घतता पर बिभिन्त करों का मारी ओम छाव दिया पया बा झ्लौर इस डकार मारहीम बतता के रबपु से दिटिश-साप्र[स्प का सब्य मबन बन रहा था । हिप्वुस्तान शिटिश धाम्राग्प की बुरीबा। महाँक स्पापार गा सदस बड़ा माम प्रंग्रेजों के दाप मं था। हिलुस्तात के दारिद्रप के सम्बर्ध म मार्त के प्रसिद्ध प्रपशास्त्रौ शाह प्रौर खंबाटा से सिश्षा-- 'हिल्दृष्तानिशों को प्रौसत प्रामइती इतनी होती बी कि ठीत प्राइमियो वो प्रामत्रनों से दो का ही पेट मर सकठा हैं। उतको तौन बार खाना लाने की जरूरत ली है। तीन बार न खाकर दा ही बार खाएँ तो इतना हो सकता है कि इस होगों प्राइमियों का पेट भर बाय । लेकित इश्क लिए शर्त यह है कि गे कपडु स पहनें प्रौरए ते बर म हो रहे बरिकि सात भर बाहर ह्वी दित काटे । ठमी प्रपती झामइसी स व भर पट खाना ला सकते है, सकिन यह खासा भी एसा होता चादिए जा सबस मोटा म्यैटा धोर शारीरिक शक्ति के लिए बिलकुल मामूली हा। * परकपरी रिपार्टी से मी साथारदा जतता की इपनीय इछा प्रकट द्वोठी है ुराज्ञ मजपूरों को घोड़पर हिस्दुस्तास के मजदूरों को इतभा पयार मिप्तती है कि मुरिकिस से है उतह्य पेट मर सच्चा है प्रौर ठन इंका रह उच्ता है | हर जप इलफो बस्तों में टूँसाटरंस मबी हुई ई । गश्सौ धौर ठबाही की कोई ह॑इ हीं । ह हिदुस्ठास के छोपों का एक बहुत बड़ा हिस्सा प्रव भी एसी गरीबी कै शित काट रहा है कि इस तरह कौ चीज परि्रम क देशों में ६ ही सही । जिम्दगों भोर पोत के कगार पर इसक हित कड़ रहे हैं। ४ 'र॒घाम-मंत्रों के प्रथिकृरि कैखों में मजदूरी दी कुस प्राबादों का दोनतहाई मात्र एस लोगों छाप है जो कर्ज म दूबे हुए है। ....प्रबिझांश छोगों का झच मारत-जुर्शरा । भाण्त को सम्पत्ति प्रौर उसझी करोपयोगी अमता १६२४-यृप्ठ १४३ । १११७-२८ म हिन्दुस्तान । १५२१५ ३० में हिखुस्तान । न /0 +क




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