गांधीवाद संयोजन के सिद्धान्त | Gandhiwad Sanyojan Ke Siddhant
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
88 MB
कुल पष्ठ :
304
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गॉघीवादी योजना १
पाएडर्य की बात मी कया है? '
औयें पेदा करमे की मौतिक झक्ति हमने इतनी बढ़ा सी है कि हम
इसका पूरा उपयोग भी महीं कर पाते । संसार में फ्रेसी हुई स्पापक बेकारी
दुऋ प्रौर सोपों का प्ारीरिक तदा म(ससिक पतव इसीका परिणाम है।
“हमारे सामते एक भ्णौज समस्या हैं। कारजामों में माल इठगी तेजी से
(वा होता लाता हैं भ्ौर उसके देर लगते बाते हैं कि उसकी माय ही मरती
जा रहौ है। * इतमी प्रशिक समृद्धि प्रौर विपुक्षता के बौच भी प्रादमी
दरित हो भौर पूलों मरे, यह सचमुच ऐसी भात है कि इसपर किसीकों
विश्वास नहीं होगा हँसी भागेरों। क्रेब से शिखा है -समृद्धि मुस्कराती
है, परम्तु हाम | कैगल मुट्ठी मर भ्राइमियों के लिए ही | सेष तो केबल बेखते
रहें उनके सिए बह गहीं है। बे थो थानों में मरनेबासे उत भ्रमार्मोंक॑
स्रमान हैं जिसके प्रासप्राप ऊपर-भीचे संपत्ति-ही-सपत्ति है, किल्तु जो उसकी
इर्पिता को जूना हुखदायी बता देती है|?
प्रशवत्ता मह्द तो स्पष्ट है कि हयारी मुस्ीगर्तों का कारण यह उत्पादत
कौ बविपुसता गह्टी है, बल्कि हमारी प्राविक रचता का दोप झौर उसके
शश्षत प्रादफ्प हैं। पूंजीवाद भपने साप कैवत धोपध भ्रौर मेकारी हौ मही
लापा बल्कि उसने तो मगृष्य को निरा एक बड़ यन्त्र प्लौर घशिदाप का
पृष्ठ बना दिया है। बौरे-भीरे, परम्तु सिश्चित मधि से उसने प्रजाठग्व को
प्रदर से फ़ोखता कर दिया है, जो प्रग कैबस दाचा-माज रह यया है। मास
बता को उसमे प्रपसे मार्ग सै हृटा दिया है। प्रभ तो संसार में सोते भौर
'राशप्तों का राम्य है। पूंजौबाद को मूठूठ की स्वतरजता का सबादा पह
जाते का कषण्भाजतक प्रयाध् भ्यर्ण ही किया जा रहा है! स्पाम पौर प्रजातेत
कौ डौगे हांकी जा रही हैं जबकि हर भादमी प्रय जातता है कि मसल
* पी शटेशिकेट्र टैश्स गाइड व् क्डं स्दौस', है ४५
६ “कर्क, बेलब एयद हपीनैस सॉफ़ मेमहाइएड--छच ज. वेस्स व. १९१
३ एशाला क्ञादाए हफॉ(ढ -- बाँडड डी6 बा011९3 07 ४
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