राजस्थानी साहित्य कोश छंद शास्त्र | Rajasthani Sahitya Kosh Chad Saster

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राजस्थानी साहित्य का आ्रादि काल रे वावर का नि्णायिक युद्ध (सं. १५८४) हुमा श्रौर संग्रामसिह की हार के साथ ही मुगल- सल्तनत की नींव भारतवर्ष में कायम हो गई । पर इसके वाद भी राजस्थान के लोगों ने विदेशी सत्ता के सामने पूर्ण समपंण नहीं किया । इतने बड़े संघर्ष के कारण सामाजिक उथल-पुथल भी स्वाभाविक ही थी । इस संकटकालीन स्थिति में.भी यहां की जनता ने श्रपने धर्म श्र संस्कृति को ही प्रधानता दी श्रौर किसी तरह के लोभ में श्राकर भी विदेशियों की संस्कृति को स्वीकार नहीं किया । जो योद्धा धर्म सस्क़तिक श्ौर सहाय की सहायताये युद्ध कर के प्रारोत्सगं करते थे जनता उन्हें सम्मान की दृष्टि से. देखती थी । इस प्रकार जूक कर मरने वाले जूकारों की. लोग श्राज भी देवताओं की तरह पूजा करते हैं । भाषा की दृष्टि से इसमें श्रई श्र अ्रऊ के प्रयोगों की वहुलता हैं पर विदेशियों के साथ सम्पर्क बढ़ने से यहां की भाषा में कुछ भ्ररबी-फारसी के शब्दों का भी प्रचलन श्रवंद्य हो गया जिसका उदाहरण इस काल की महत्वपूर्ण रचना श्रचकदास खीची री वचनिका में देखा जा सकता हैं । ः - ही का कि है. इस काल के साहित्य को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है- (१) जेन साहित्य (२) जैनेतर साहित्य (1) चारण-शंली का साहित्य (0 भक्ति साहित्य (३) लोक साहित्य जेसा कि पहले कहा जा चुका है यह काल संघर्ष श्रौर सामाजिक उथल-पुथल का काल रहा हैं पर इस समय का वीररसात्मक साहित्य बहुत श्रधिक उपलब्ध नहीं होता है । अधिकांश साहित्य जन-धर्मावलंवियों द्वारा रचा गया है । इस काल की सैकड़ों जैन रचनाएँ श्राज भी उपलब्ध होती हैं । जन मुनियों और श्रावकों ने जैन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए नवीन साहित्य का ही सुजन नहीं किया प्राचीन भाषाओं के महत्वपूर्ण ग्रंथों की टीकाएँ टब्वे वालाववोध पद्चात्मक श्रनुवाद श्रादि भी बहुत किये और महत्वपूर्ण साहित्य को उपाश्रयों आ्रादि में सुरक्षित रख कर नष्ट होने से बचाया । इस काल का प्रमुख साहित्य जन साहित्य ही है । धार्मिक उद्दे्य से लिखे जाने के कारण ही इसे साहित्यिक महत्व विलकुल न देना अनुचित होगा । इस काल के साहित्य का वास्तविक महत्व स्वदेश-प्रेम के लिये संघर्ष की उदात्त भावना को उद्दीत्त करना है और संस्कृति की रक्षा हेतु श्रात्मबल प्रदान करना है । जन धर्मावलंवियों ने इस प्रकार से राजस्थानी भाषा और साहित्य की महानु सेवा की हैं जिसका महत्व राजस्थानी साहित्य के इतिहास में कभी कम न होगा । जनेतर साहित्य में चारण साहित्य भक्ति साहित्य श्ौर प्रेमगाधात्मक साहित्य की गणना की जा सकती है । चारण शूली में लिखी गई वीररसात्मक रचनाओं में सिवदास गाडण कृत भ्रचढदास खीची री वचनिका वादर ढ़ाढ़ी रचित वीरमायण श्रीधर व्यास का रणमल्ल छंद झादि प्रमुख हैं । वीरमायण की बहुत प्राचीन हस्तलिखित प्रतियां उपलब्ध नहीं होतीं श्रौर मौखिक परम्परा के कारण उसमें भाषागत परिवर्तन के साथ-साथ




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