प्रसाद - साहित्य - कोश | Prasad Sahitya Kosh

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Prasad Sahitya Kosh by हरदेव बाहरी - Hardev Bahari

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about हरदेव बाहरी - Hardev Bahari

Add Infomation AboutHardev Bahari

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
उजं [ आगरा से १७. मील भरतपुर जाने बाली सडकपर रेलवे स्टेशन, कस्वा , दिल्‍ली के राजा अनगपाल के पुत्र अचल ने बसाया था। चैत मेँ मेला लगता है । ] अज--' रघुवद ' में वर्णित । दे० कालिदास । [ रघुपुत्न अज दशरथ के पिता थे । “ रघुवक्ष ' में इन्दुमती के स्वयवर, अज से इन्दुमती के विवाह, इन्दुमती की मृत्यु और अज के विलाप का वर्णन है] * छजमेर-अकवर का मेवाड मे स्थित मुगलसेना के किए आदेश-- * भेजो आज्ञा-पत्र शीघ्र उस सैन्य को , सव जल्दी ही चके माए अजमेर मे । ' --महाराणा का महत्व [ दिल्‍ली और अहमदाबाद के वीच में मुसखछमानो का सास्कृतिक केन्द्र 1 अकबर ने यहा एक भसजिद वनवाई थी । दिल्‍ली से २२५ मील, मारवाड से ११० मील 1 ] श्रजातशत्ु--तीन अको का एतिहासिक नाटकं । नाटक के प्रारम्भ मे राय कृप्ण- दास द्वारा दिया गया प्राक्कथन ह । इसमें कृष्णदासजी ने सक्षिप्त प्रशसा के रूप में कुछ शब्द लिखे है । इसके वाद लेखक की लगभग तेरह पृष्ठो की भूमिका है, जिसमे उन्होंने नाटक के विषय में ऐतिहासिक तथ्य क्या है--इस पर अपना दृष्टिकोण स्पष्ट किया है ! प्रथम अक में नौ दुष्य है । मगव का युवराज जजातकानु शिकारी लुब्धक पर विगड ३ जनातदात्र रहा ह , क्योकि चह उसके चित्रक फे लिए मृगशावक नहीं लाया । अजात- शत्रु की सौतेली वहन पद्मावती ( जो कौशाम्वी के राजा उदयन की मेंझली रानी है) उसमें हस्तक्षेप करती है और अजातदातु को स्नेह से समझाती हैं और मगघ के भावी शासक को अहिंसा और करुणा की शिक्षा देती है। किन्तु भजात- शत्रु की मा, छलना, आ जाती ह , वह पद्मावती का अपमान करती है ओर साथ-दी-साथ वासवी ( पद्मावती की माता) का मी तिरस्कार करती हैँ। सम्राट विम्वसार और वासवीं गौतम बुद्ध से प्रमावित है , इसलिए छलना दोनो का अनादर करती है । बह वृद को ' सिखमगा ', ' कपटी ', ' ढोगी ', मुनि समञ्चती हँ । छलना विम्बसार से भजात- शत्रु के अभिषेक की माग करती हैँ । भगवान्‌ तथागतं के उपदे भौर वासवी की इच्छा से वे तैयार हो जे है। गौतम का प्रतिद्वन्द्दी देवदत्त इस सफ- लता से बहुत प्रसन्न होता हैं और वासवौ तथा विम्बसार के नियम्रण का उपाय सोचने लगता हैं । उन्हें तपोवन में रखा जाता ह । वासवी विम्वसार को वत- लाती है कि वानप्रस्थ आश्रम में भी उन्हें स्वतंत्र नहीं छोटा गया हैं । बह यह भी प्रस्ताव करती ह किं पिता मे गाचल में मिलें हुए काशी के राज्य की लाय महाराज के हाय में हौ आएगी । अवात का उस पर कोई अधिकार नहीं हैँ । कौवाम्वी-नरेंग उदयन की छोटी गनौ




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now