जैन जाति निर्णय समीक्षा | Jain Jati Nirnay Samiksha

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Jain Jati Nirnay Samiksha by मुनि मग्नसागर - Muni Magnasagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[२] चड़ेला या प्रोपमय आन्दोलनों ने घगटायनचाला गाना उत्तम मतुष्य जन्म नो याल नदी स्फ्रता दुष्टाशयोने एममि करवापांज हित समझेछे । नर्फ शक्ति ने तीलांजली ऋ तार विचार वुद्धिनो विनाश फरनार सत्यता ने बेची शत हृष्टि मर्यादानों ठेश निकाल करनार थो शाख शैलिने डा कुवामा उत्तार्नार, आहोन सार्गओ केवल घमना नाशफक वी समाजमा सडो घालो बैठा छे जेमाना पक स्थानकवासी माग माथी नासी आवेला उद भठ चेप घारी शान छु दरेपरा आध्ु निक सब भद्दात्माओना चरित्ोमां केवल टचु दिथी अशान ताथी दोष दृष्टि थी दृष्टि अम्धता थी घणाज अनर्थ- कारक हड हडता भूटा आक्षेपों मुझी जेना भाप जैनपत्नना अधिपति द्वारा पुस्तको चद्देचावों पोताता दुष्शशयों बहार मूको समाजनी पचित्र अने दिःय दशष्टि उपर स्थादी चोपड बाजु कार्य कये ले ॥ जा० मु ० च० पू० २-३ +॥ फेवल छेोप भावे या पूर्व सचनो कोई चेर श्राभावमां लेया मागता होय नहीं एवा दुए आशय थी तेमना कातिल ऊलेजाए अवमाधव द्विमत चलाचविने शाशन हित्त) नहीं पण शोशन प्रेस काया निममितेज ज्ञान रु दरे पोताना।दुष विचारों दर्शाव्याले, समाज भा प्रगट कर्या छे॥ हैँ फू खितिएछु , कई याग्यतएछु, फड समय शक्ति घ्राप्त करी लखु छु तेनो लेख मात्र पण तेमणें विचार कर्यो दोय तेम अमने लागतु नयो । णा० झु० घ० पृ०... ४ ॥ उत्तम सत चुत्तिश्नो ने ०क अवम चहाफ अज्ानी पामर त्तिए अवमता दर्शाववा श्रयल ऊरी जैन समाजना दिल: ड'जाब्यां घाल्या ललगाध्या जास ५ फैलाबी दीवो । ज़ेयी आवा श्रध्रप्तों ने पत्युतर आपवोज जोईये णएयो अपम्तारो खाशन उन्नत रूप अभिलापा थया थी (ज्ानसुन्दर मुझ




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