जंगल के आसपास | Jangal Ke Aasapas

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Jangal Ke Aasapas by राकेश वत्स - Rakesh Vats

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चट्टान पर पटक दिया था,। पत्थर के कई टुकड़े ही गए थे पर चट्टान पर सरोंच तक नहीं भाई थी। फिर वह ठंडा-सा होकर झागे बोला था, “श्रव रायसाहबों की संतानें कुछ दूसरी तरह की उपाधियां पाकर बन गई हैं और ये नेता लोग बिगड़ी हुई अग्रेजियत का दूसरा नाम रह श्यामा ने पूछथा चाहा था कि यह बिगड़ी हुई अंग्रेजियत क्‍या होती है ? पर उसी समय घांय की आवाज़ हुई थी और आवाज़ के साथ हो एक जानवर ऊपर की पहाड़ी से लुढ़कंता हुझ्ना दो पेड़ों दी सन्धि के बीच झा फंसा था। नायूराम देखते ही पहचानकर बोला था, “कस्तूरी मृग है ध जब हिरण को उठाने के लिए शिकारी नीचेः उतरने सगे थे तो उनको देखकर भी नाथूराम के होंठ फुसफुसाए थे, “रायसाहव के आदमी हैं ।” इस, वक्‍त भी नाथूराम के हाथ की पकड़ दयामा की कलाई पर बहुत सख्त-हो गई थी । उसकी चाल भी बहुत तेज़ ही गई थी, इतनी तेज्ञ कि कही-कहीं तो इयघामा को उसके साथ भागता पड़ा था। और यह सख्ती और तेज़ी तव जाकर ढीली पड़ी थी जब चढ़ाई-चढ़ने के ब दोनों को अपने ग्रांव पहरुआ के मकान और पेड़ दिलाई देने लगे थे। * व्यामा का ध्यान टूटा तो उसने देखा कि भीड़ के बीच चल रहा थोझा साथ के लोगों को हाथ मटका-मटकाकर बुछ समझाता जा रहा है। उसने भ्रनुमान लगाया कि बहू उसी की रीछ मारे जाने की “कहानी ही सुना रहा होगा ओर बता रहा होगा कि औरत को श्यामा जैसी ,ही बहादुर होना-चाहिए ३ इब्ामा की इस वात का पता है कि ओझा ये सब ब्ार्ते उस तक,पहुंचने के लिए ही किया करता है और वातें -पहुंचाकर चाहता है कि'*'। ओझा की चाह का ध्यान आति ही -श्मामा के जबड़े थोड़े सख्त हो गए और मुह से निकल,गया;-“पेदू, भेसा, सुअर 1” - “- ; गालियां उयलकर; उसके मन को थोड़ी तसह्ली हुई तो वह देशती की धार की तर्जनी उंगली,से शिनाख्त करके फिर घास के साथ जैसे अत्थरों की भी काटती चली जा रही थी। उस अग्नि-घ्वनि मे उसे अपने मरते पिता वी दहाड सुनाई दे रही थी और सारी-सारी रात बैठकर फेपड़े सिलती सां-की पुरानी मद्यीन की सुवकतो हुई किटकिट भी । इसी जंगल के आसपास / 27




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