महाभारत हरिवंश पर्व | Mahabharat Harivans Parv

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Mahabharat Harivansh - Poorvardha by पंडित रामचंद्र शर्मा - Pandit Ramchandra Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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<क-...००, १.20. 1409 8, 400. 0. 40१. 4. 200:4५./७, 2५ वन - .०भा 2.2१. 40.4 कक. आप 40७३ ,गा0ल्‍० मर 210 कवि ५8 ५०००० ५1 कल 201 रजसवलां त्यजेन्स्ले्ज्डा पतितां ब्रात्यके! सह ॥ १८। द्वितन- * द्विदवेदवाहश्व न वरदेच्च कथाव्ती [सत्यं शौच दयां मौनमार्जब॑ | विनय॑ तथा ॥ १६॥ उदार मानस तदृत्कुपदिवं कथाव्रती | | भ्रद्धाभक्तिसपायुक्ता नान्‍्यकार्युपु लालसा। ॥ २० ॥ वाग्येता। ( शुत्॒योज्य्यग्रा। भोतार। पुण्यमागिनः | अभकक्‍त्या ये कथां पुणयां ( शुस्ब्न्ति महुनाधमा; ॥ २१ ॥ तेषां पुएयफर्ल नास्ति दु।खं । , स्पाज्जन्मजन्मनि | पुराण ये तु संपूज्य तांबुलाबेरुपायने! २२ । शूण्वन्ति च कथां भक्‍त्या दरिद्राः स्थुने पापिनः। कथायां कीत्पे- । मानायां ये गरून्त्यन्यते! नरा। ॥ २३ ॥ भोगान्तरे प्रणश्यन्ति तेषा दाराथ सम्पद। | से।ष्णीपमस्तका ये च कथां शुख्वन्ति । पतिता स्त्री व्रात्य मनुष्य ब्राह्मणद्वेपी पुरुष और वेदवाह्म पुरुषों । से सम्भाषण न करे, कथात्रती पुरुष सत्य शौच दया मौन सरलता और विनयक्रो धारण करे और इसी प्रकार अपने मन | को उदार रक्‍्खे अद्धाचान भक्तिपान्‌ अन्य कार्योमें लाखसा न | रखने वाले ओर वाणीको नियम रखने वाले पवित्र अब्यग्र | थोता पुण्यभागी .होते हैं ओर जो अपम पुरुष अभक्तिसे पुएय- £ मयी कथाको सुनते हैं उनको पुएयक्रां कुछ फल नहीं मिलता है । और वे जन्म जन्मान्तरोंमें दुःख भोगते हैं ओर जो पुरुष ! ताम्वूल आदिको मेंट चढ़ा पुराणकी पूजा कर कथाकों भक्ति से सुनते हैं ( वे दूसरे जन्ममें ) पापी ओर दारिद्री नहीं होते हैं, जो मनुष्य कथाक्रे समय दूसरे स्थान पर चले जाते हैं ( पूर्ष- जन्मक्रे .) भोग भोगफ़े अनन्तर उन मलुष्पोंकी स्त्रियं और सम्पत्ति नए्ट होनाती हैं ओर जो पगड़ी पहिर कर कथा घुनते । हैं वे मनुष्पाधप पापी पुरुष वगले होकर उत्पन्न होते हैं और जो मनुष्य इस पवित्र कथाकों सुनते समय ताम्वूलका भक्षण | करते हैं, उन पुरुषोंको नरकमें यमदृत उनकी .विष्लाका भक्षण £




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