महाभारत हरिवंश पर्व | Mahabharat Harivans Parv
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
100 MB
कुल पष्ठ :
1668
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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रजसवलां त्यजेन्स्ले्ज्डा पतितां ब्रात्यके! सह ॥ १८। द्वितन- *
द्विदवेदवाहश्व न वरदेच्च कथाव्ती [सत्यं शौच दयां मौनमार्जब॑ |
विनय॑ तथा ॥ १६॥ उदार मानस तदृत्कुपदिवं कथाव्रती | |
भ्रद्धाभक्तिसपायुक्ता नान््यकार्युपु लालसा। ॥ २० ॥ वाग्येता। (
शुत्॒योज्य्यग्रा। भोतार। पुण्यमागिनः | अभकक्त्या ये कथां पुणयां (
शुस्ब्न्ति महुनाधमा; ॥ २१ ॥ तेषां पुएयफर्ल नास्ति दु।खं ।
, स्पाज्जन्मजन्मनि | पुराण ये तु संपूज्य तांबुलाबेरुपायने! २२ ।
शूण्वन्ति च कथां भक्त्या दरिद्राः स्थुने पापिनः। कथायां कीत्पे- ।
मानायां ये गरून्त्यन्यते! नरा। ॥ २३ ॥ भोगान्तरे प्रणश्यन्ति
तेषा दाराथ सम्पद। | से।ष्णीपमस्तका ये च कथां शुख्वन्ति ।
पतिता स्त्री व्रात्य मनुष्य ब्राह्मणद्वेपी पुरुष और वेदवाह्म पुरुषों ।
से सम्भाषण न करे, कथात्रती पुरुष सत्य शौच दया मौन
सरलता और विनयक्रो धारण करे और इसी प्रकार अपने मन |
को उदार रक््खे अद्धाचान भक्तिपान् अन्य कार्योमें लाखसा न |
रखने वाले ओर वाणीको नियम रखने वाले पवित्र अब्यग्र |
थोता पुण्यभागी .होते हैं ओर जो अपम पुरुष अभक्तिसे पुएय- £
मयी कथाको सुनते हैं उनको पुएयक्रां कुछ फल नहीं मिलता है ।
और वे जन्म जन्मान्तरोंमें दुःख भोगते हैं ओर जो पुरुष !
ताम्वूल आदिको मेंट चढ़ा पुराणकी पूजा कर कथाकों भक्ति
से सुनते हैं ( वे दूसरे जन्ममें ) पापी ओर दारिद्री नहीं होते हैं,
जो मनुष्य कथाक्रे समय दूसरे स्थान पर चले जाते हैं ( पूर्ष-
जन्मक्रे .) भोग भोगफ़े अनन्तर उन मलुष्पोंकी स्त्रियं और
सम्पत्ति नए्ट होनाती हैं ओर जो पगड़ी पहिर कर कथा घुनते ।
हैं वे मनुष्पाधप पापी पुरुष वगले होकर उत्पन्न होते हैं और
जो मनुष्य इस पवित्र कथाकों सुनते समय ताम्वूलका भक्षण |
करते हैं, उन पुरुषोंको नरकमें यमदृत उनकी .विष्लाका भक्षण £
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