अथर्ववेद संहिता | Shoinkiya Athrvedsamhita Khand-3-4

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Shoinkiya Athrvedsamhita Khand-3-4 by पंडित रामचंद्र शर्मा - Pandit Ramchandra Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ख1] * विपय पृष्ठ वित करके बॉघे ॥ तथा आंगिरसीमहाशान्तिरे पलाशमणि चम्धनमें भी यह सूक्त पढ़ां जाता हैं | ३७ द्वितीय अनुवाक- प्रथम सूक्त । अभिचारकम में इससे खेरमें उसे पीपलकी मणिफा सम्पातन और अभिमन्‍नण करके बॉथे ॥ तथा इड्रिडालंकृत पाशोंकों इससे संपातित ओर अभिमन्नित कर शज्रुके मम में बीधें ॥॥ तथा इसी खक्तसे पूरेबत्‌ पराशोक्ो अभिमन्त्रित कर तिथब्यराश्।! इस सातवीं ऋचासे नदीके प्रवाहमें फेंक देगे ॥ इसी प्रकार पहिलेकी समान अभि- मन्ज्रित पाशोसे आठवीं ऋचासे मेरित करे ॥ तथा अमि- घरित और अभिचर्यमाणझे लिये विहित महाशान्तिके मणिवन्धनमें भी यह रक्त पढ़ा जाता है । खदिर और अश्वत्यक्या निर्वेचन । ४२ द्वितीय सूक्त । इससे क्षेत्रियव्याधिकी सिकित्साके लिये हिरनके सींगकी यणिकों वाँधे, और सॉंगसहित जलको पिलादे, हिरनऊ चर्मक्े शंकुछिद्रभागको भज्जलित करके जलमपें दाले और उस जलतसे रोगी पर अभिषेक करे, यब- होम, और अभिमस्त्रित भातका भक्तण करे। तथा कौमारी: 1 शान्तिके हरिणविषाणापग्रके मणिवन्धनमें यह सृक्त पढ़ा जाता हैं । जलके भीतर संपूर्ण औपधि होनेका प्रमाण | «५४१ वृतीयसृक्त | इसका उपनयनऊममें वालकके नाभिदेश फो छूकर अज्ञमन्‍्त्रण किया जाता हैं । मेघाननन और आयुवेधनके कार्मोंमे इससे होम किया जाता हैं ) विवाहमें इसकी चौथी ऋचासे शुल्कद्रव्यकों अलग कर यह द्रव्य तेरा है और यह मेरा कह कर विभाग करे। सांपनस्यकर्म >शक्ऋफतचएसनए पत> पतज सपा ला जा पा भा ज ञ जल ज जन ञ सचज ऋ प्रजा प जच्प कक




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