सोवर्ण | Sovarn

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Sovarn by श्री सुमित्रानंदन पन्त - Sri Sumitranandan Pant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सापत तीसरा स्वर कसा बुद्सलुगित शच्द जाल हे! सुदर वारछल ! सनी स्थर कायरता से पपयना है प्रतिभायानों का! वायरता से ग्रस्त रहा रतिहास सनुत्र का, फायरता से गिमुस हथा ग्रतियुग में मानय निज अतर सत्या से, सत्ता 71 पूसार से । पतमान मे हत रहारय-नपहते भतीत या मृत रूप साग्रत क्षण या, उस प्रति जायत्‌, हमया निज निज स्थिति से पृथ स्वप्म के लिए आत्म यज्ञ में पूृर्णाहुति दँनगी है-- तोसरा म्यर उसा ला+ यनज्ञ कहे, मय मृल्या का चातिवाह बन । सामातरितत्ता गियल ये दे तीत बतमान के सत्तों ८ प्रति आपत्‌ बीद्धित पग व्यक्ति या जा छाया सा काप रहा जननमय सं मृद्ित, सापधान रहना है. हमा-- एवं स्पर क्या बउले है। ? तोपरा स्पर यामृहिकता कुृपत ये ह पिस्सते भतीते की फ्पाओशों प॑ हम प्रकाय हटो जा, हमाा रहा है. सना... सयरित--




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