पन्चतन्त्रएम् | Panchtantram
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21 MB
कुल पष्ठ :
576
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मित्रभेद: १३
तत्र दमनको5ब्रवीत्--भद्र करटक, अय॑ तावदस्मत्स्वामी पिज्भुलक उदक-
ग्रहणार्थ यमुनाकच्छमवतीय॑ स्थित:। स किनिमित्तं पिपासाकुछो$पि
निवृत्त्य व्यूहरचनां विधाय दौ्म॑नस्थेनाभिभूतोज्त॒ वटतले स्थित: ।! करटक
आह--'भद्र, किमावयोरनेन व्यापारेण उक्त च यत:--
अव्यापारेषु व्यापारं यो नरः कतुंमिच्छति ।
स एवं निधनं याति कीलोत्पाटीव वानरः ॥ २१ ||
दमनक आह--'कथमेतत् ।' सोब्च्रवीत्--
कथा १
कस्मिश्विन्नगराभ्याशें केनापि वणिक्पुत्रेण तरुखण्डमध्ये देवतायतनं
कतुमारब्धम् । तत्र च ये कर्मकरा: स्थापत्यादय:, ते मध्याह्नवेलायामाहा-
रार्थ नगरमध्ये गच्छन्ति । अथ कदाचित्तत्रानुषज्िक वानरयूथमितश्चेतश्र
परिभ्रमदागतस् । तत्रेकस्य कस्यचिच्छिल्पिनो$धंस्फाटितो55जनवुक्षदारु-
मय: स्तम्भ: खदिरकीलकेन मध्यनिहितेन तिष्ठति। एतस्मिन्नन्तरे ते
करने वाले थे। वे दोनों आपस मे मन्त्रणा करने छगे । उनमें से दमनक ने कहा
“--भद्र करठक ! हमारा स्वामी पिजुछक तो जल पीने के लिए यमुना की जल
युक्त भूमि पर वेठा हुआ था । फिर क्या कारण है कि प्यास से बेचैन होने पर
भी लोटकर यह अपनी सेना का मण्डल बनाकर, दुःखी मन से पराभव को प्राप्त
होकर इस बरगद के नीचे आया ? करटक बोला--हे भद्र ! हम लोगो को इस
व्यर्थ के विषय में सोचने से क्या प्रयोजन ? क्योंकि कहा है--
जो मनुष्य व्यर्थ का काम करना चाहता है, वह उसी प्रकार नष्ट हो जाता
है जिस प्रकार कील को उखाड़ कर वह वानर नष्ट हो गया था ॥ २१ ॥
दमनक ने कहा--यह किस प्रकार की कथा है ? उसने कहा--
किसी नगर के समीप किसी बनिये के पुत्र ने बगीचे के बीच में देवमन्दिर
का निर्माण प्रारम्भ किया। उसमें काम करने वाले जो कारीगर, शिल्पी ( बढ़ई )
आदि थे, वे दोपहर के समय भोजन करने के लिए नगर में चले जाते थे। एक
समय अपनी जाति के स्वभाव से वानरों का झुण्ड इधर-उधर से घूमता हुआ
वहाँ आ पहुँचा । वहाँ किसी एक कारीगर द्वारा आधे चीरे हुए अज्जनवृक्ष के
काठ के खम्मे के बीच खेर की खूँटी छगी हुई पड़ी थी। इसी बीच वे बानर
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