जयपुर जैन श्वेताम्बर समाज डायरेक्टरी | Jaipur Jain Swetamber Samaj Directory
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm, धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12.42 MB
कुल पष्ठ :
448
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about सौभाग्यमल श्री श्रीमाल - Saubhagyamala Sri Srimal
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ज्लयप्तुर छत्नेलारूत्नर उ्तेल स्तस्ताज्त छा स्व॑च्या लिल लोक्को प्पक्कारी स्वंरूथ्या पं लयाहपाललााल [3 डॉ० सरेन्द्र भानावत जैन धर्म अ्रहिसा प्रधान धर्म है । भ्रहिसा के दो रूप है-एक निपेघपरक और दूसरा विधिपरक । किसी भी प्राणी के प्राणों का हनन नहीं करना तथा किसी भी प्राणी को मनसा वाचा कर्मणा किसी भी प्रकार की पीड़ा न पहुँचाना श्रहिसा का निपेघपरक रूप है । पीडित मानवता की सेवा करना असहाय एवं जरूरतमंद लोगों को हर सम्भव सहयोग प्रदान करना उनके सुख-दुख में सहभागी बनना उनके सर्वा गीरा विकास के लिए यथाशक्ति मदद करना प्रारिमात्र को झ्रपने समान समभकना श्रहिसा का विधिपरक रूप है। भगवान् महावीर ने मैत्री श्रौर सेवा को महान् घर्म बताया है । तीर्थकंरों द्वारा साधु-साध्वी श्रावक श्र श्राविका रूप चतुरिध संघ को स्थापना के पीछे श्रात्म-कल्याण एव लोक-कल्याण की महत्त्वपूर्ण भावना निहित रही है। जैन साधु श्र साध्वी श्रपने प्रवचनों में लोकोपकार पर सेव बल देते रहे है । फलस्वरूप उनकी प्र रणा से स्थापित श्राज देश में भ्रनेक लोकोपकारी संस्थाएँ बिना किसी धर्म जाति श्रौर वें के भेदभाव के सार्वजनिक रूप से सेवा कार्य में सक्रिय हैं । जयपुर नगर जैन धर्मावलस्बियों का प्रमुख केन्द्र है । यहाँ श्वेताम्बर एवं दिगस्बर दोनो परम्प- राझ का विविध क्षेत्रो में प्रभाव रहा है । श्वेताम्बर परम्परा के प्रमुख सम्प्रदाय है -मुर्तिप्रजक खरतरगच्छ एव तपागच्छ स्थानकवासी आर तेरापंथी । इन सम्प्रदायों के प्रभावशाली श्राचार्यों मुनियों श्रौर साध्वियों का यहाँ निरन्तर श्रागमन होता रहा है श्रौर उनके सदुपदेशों की प्रेरणा के फलस्वरूप शिक्षा चिकित्सा एव श्रन्य सेवा क्षेत्रों मे कई संस्थाएँ भ्रस्तित्व मे श्राई है । यहां विविध क्षेत्रों में कार्यरत जयपुर नगर की श्वेताम्बर जैन समाज द्वारा संचालित प्रमुख संस्थाश्रो का सक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है - (1) शंक्षणिक संस्थाएं जैन धर्म मे शिक्षा और स्वाध्याय को विशेष महत्त्व दिया गया है । ज्ञान के महत्त्व को बताते हुए कहा गया है कि जिस प्रकार धागे मे पिरोई हुई सुई कही खो नहीं सकती है उसी प्रकार ज्ञान है
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