मुलतान दिगम्बर जैन समाज इतिहास के आलोक में | Multan Digamber Jain Samaj Itihas Ke Alok Me

Multan Digamber Jain Samaj Itihas Ke Alok Me by कस्तूरचंद कासलीवाल - Kasturchand Kasleeval

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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_ महावीर कीति स्तम्भ के निर्माण मे श्री रगूलाल जी वगवाणी एव श्रीमती विशनी देवी धमंपत्नी स्व ० श्री घनक्याम दास जी सिंगवी तथा उनके पुत्र श्री इन्द्रकुमार श्री वीर कया ने आर्थिक सहयोग देकर जो यह महान कार्ये पूरा कराया मे उन्हे हार्दिक धन्यवाद ता हूँ । जयपुर मन्दिर मे श्री मोतीराम कवरभानजी ने. स्वाध्याय भवन श्री माघोदास श्री वलभद्र कुमार ने मुख्य द्वार. श्रीमती पदमों देवी एव उनके पुत्र श्री शीतल कुमार ने महावीर कल्याण केन्द्र भवन की नीचे की मजिल बनवाकर एव श्री रमेश कुमार श्री बशीलाल जी ने ऊपर की मजिल मे आधथिक सहयोग देकर तथा श्रीमती रामो देवी धरमंपरनी श्री आसानन्दजी सिंगवी एवम उनके पुत्रों ने अतिथि गृह अपने ससुर श्रो असानन्दजी सिंगवी की स्मृति मे श्री महेन्द्र कुमारजी ने मन्दिर भवन के आगे चौक का फर्श वनवाकर जो सराहनीय कार्य किये वह अद्वितीय है । तथा समस्त मुरतान दिगम्बर जैन समाज जयपुर के सभी महानुभावो ने मन्दिर निर्माण के दायित्व को तन मन धन से सहयोग देकर बडी कुशलता दुढता एव उदारता के साथ पूर्ण किया । समाज का अध्यक्ष होने के नाते में अपना कतेंव्य मानता हूँ कि उन सभी महानुभावो को हार्दिक घन्यवाद दूँ । जिन्होंने इसको पूर्ण कराने से सहयोग दिया है । इस विशाल भव्य एव सुन्दर मदिर को मूत॑रूप दिया मत्री श्री जयकुमारजी ने अपने जीवन के बहुमूल्य समय के 25 वर्षें देकर और साथ दिया श्री बलभद्रकुमारजी ने मन्दिर आदि के निर्माण कार्यको पूरा कराने मे । में तो क्या समस्त मुल्तान दि० जैन समाज उन दोनो की जितनी प्रशसा करें थोडी है । जिसके लिये वे धन्यवाद के पात्र है और समाज उनका स्देव आभारी रहेगा । जेसे ही मन्दिर निर्माण का कार्य पूरा होने को आया मुभे याद आई उस पत्र की जो आज से करीब 16 वर्ष पूर्व पडित श्री अजितकुमार जी ने दिनाक 1-4-64 ई० को मुझे लिखा था कि मुलतान के ओसवाल दि० जैन समाज का कोई लिपिवद्ध इतिहास नही है मेरी इच्छा है कि वह अवद्य लिखा जाना चाहिए । अगर आप तेयार हो तो में उसे लिखना चाहता हूँ जिसमे पूर्ण इतिहास एव परिवारों की फोटू सहित जानकारी दी जावे । जिसकी याद मेरे मन मे बार-बार उठती थी किन्तु मन्दिर निर्माण के कठिन कार्य को देखते हुए अन्दर ही अन्दर रह जाती थी । वज्यपात पडा उस दिन जब अचानक सुना कि पड़ित जी का महावीर जी मे दुर्घटना से देहावसान हो गया इच्छा कुछ मर सी गई कि अब यह काम शायद कभी न पूरा हो पायेगा । अनायास एक दिन मत्नी श्री जयकुमार जी ने मुझसे आकर यह कहा कि मेरे विचार से एक ऐसी पुस्तक प्रकाशित कराई जाय जिसमे हमारी समाज मे प्रचलित पूजाए भक्ति आध्यात्मिक एव उपदेशक गीत आदि हो तथा उसमे समाज का इतिहास भी हो ।




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