यश की धरोहर | Yash Ki Dharohar

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : यश की धरोहर  - Yash Ki Dharohar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about भगवानदास - Bhagwandas

Add Infomation AboutBhagwandas

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
पुर पम्य जयदेव का पता वहाँ पर केयल राजगुदय को ही मालूम था । राजगुरु को सोते स उठा कर प्रल्छी तरह मबमोर कर विजम मे उन्हें उतका काम समम्मा पा । भाई सदाशिव भौर राज गुर दोनों राजा मष्डी रेसखवे स्टेशम के सिए बस । रास्ते भर राजभुरु बेफ़िक्ली स सोत॑ जा रहे थे | प्रापकी सिद्धियों में यह मी एक थी कि ध्राप पदल अलसे घसते मी सो सकते ये । भाई सदाक्षिव को फ्का हुई कि कहीं हजरत सोसे हुए ही हो विजयछुमार को घाठ नही सुन रहे ये ? हन्हें बया करना है इसे इम्हनि प्रक्छी तरह समझा भी है या नहों ? प्रतएब स्टेशन पर पहुँच कर सराशिव ने राजपुर को सावधान करने के पिए बहा कहाँ जा रहे हो ? ग्रुप्त दल में गोपनीयता का जो नियम था यह पूछता उसके विरुद्ध था | प्रवएब जब राज गुर ने दिल्सी जाने वासी रेलवे साइन की प्रोर एह्रक्षारा करषे कहां 'इस सरफ़॒ ता सदाशिब चुप हो रहे मगर उन्हें उसी समम धागा हो गई कि ये हस्॒रत प्रपनी सोने को घुन में कहीं गे महा ने पहुँच जायें भौर काम क लिए जहाँ भौर सोर्गों को यहाँ बुलाया जा रहा है वहाँ प्रोर यह एक गाँठ के मे निकस धार्ये । प्रस्तु माई सदाश्षिव ग्यासियर से मुझे खेकर दूसरे दिन प्रागरे पहुँच गए । इसका ही इस्तवार हो रहा घा कि राजयुद जयदेव को साथ लकर भा जायें । वाहूर से कुण्डी खटकी भौर मेंने जाकर प्रन्दर को सकल जलोसी । राजगुद साहब्‌ भपता म्घेस्ता सिए हुए भकेस पर में घुसे । विजयरुमार सिन्हा ने समम्झ दि दसीण (जयदेब) मज़ाक के सिए पीछे प्राड में छिपा है। उन्हाने मज़ाक के




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now