दर्शन का आयोजन | Darshan Ka Ayojan

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Darshan Ka Ayojan by भगवानदास - Bhagwandas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१७ दशेन जो भी वही बात है, हुआ । आत्यंतिक ऐकांतिक सुख की लिप्सा, और दुःख की जिहासा, यही दशेन की ओर श्रवृत्ति का मूल कारण है । विशेष-विशेष सुख की लिप्सा और विशेष-विशेष दुःख की जिहासा से विशेष-विशेष शासत्र और शिल्प उत्पन्न होते हैं । सुखसामान्य की प्राप्ति श्रोर दुःखसामान्य के निवारण के उपाय की खोज से शाख््रसामान्य, सब शाख््रों का संग्राहक अथोत्‌ दशेन- शाश्ष ( जो सब शात्नों के सार का, हृदय का, तत्त्वों का, तथा संसार के मूल परमात्मा का, दर्शन करा देता है, क्‍योंकि उस में योग शाश्नष भी अंतर्गत है) उत्पन्न द्वोता है । दशन शब्द इस शाम्र का नाम दर्शनशाखत्र कई हेतुओं से पड़ा। सृष्टि-क्रम के इस विशेष देश-काल-अबस्था श्र्थात्‌ युग में. ज्ञानेंद्रियों में दो, आँख ओर कान, तथा कर्मेंद्रियों में हाथ, अधिक काम करने वाली इंद्रियां हैं | प्राय: इन के व्यापारों के द्योतक शब्दों से बौद्ध प्रत्यय (मेन्टल आइडीयाज” 'कानसेप्ट्स?) आदि पदार्थी का भी नामकरण सभी मानव भाषाशओओं में हो रहा है। नेदिष्ठ निस्‍्संदेह ज्ञान, विस्पष्ट प्रत्यक्ष अपरोक्ष अनुभव, को दर्शन कहते हैं । “देखा आपने ?” “हू यू सी १!” का अथ यही है कि, “आप ने खूब साफ तौर से समभ लिया न !?२ संसार के ममे का, जीवन-मरण के रहस्य का, सुख दुःख के हृदय का, अपने स्वरूप का, पुरुष ओर पुरुष की प्रकृति का, जिस से दर्शन हो जाय वह दशन । दर्शन का अथ आँख भी । जिस से नयी आंख हो जाय, और, “नयी आँख को दुनिया नयी' के न्याय से, सांरी दुनिया का रूप नया हो जाय, नया देख पड़ने लगे, वह्‌ दशेन। “मेधाउस देवि विदिताखिलशाख्र- सारा”, सब शाब्रों के सार को, तक्व को, पहिचानने की शक्ति हो जांय, सब में एक ही अथ, एक ही परमात्मा की विविध विचित्र अनंत कला, देख पड़ने विनलमन्‍वमननौयिनननन-न3०-५५ 34५3-५५ 23५3 नन+न+५---न-७-५५० _क3 ० ८०० कल ने पतन अत नन>चिन- लिन ऑनन+ %.. «४ ५“+6ध ७ « ३७७ ०५०००--०--++्ववमत बनन-ल->ब++ | ७--०५०७५ ९७७५3» ८७-->>०-++--++--+०«»->७० १ [)0 ए0प 866 ? २दशन का अर्थ मत, राय, ए1०७, ०0110, भी है । यथा “प्रस्था नभेदाव्‌ दर्शनभेदः”; स्थान बदला, दृष्टि बदत्नो; अवस्था बदलो, बुद्धि बदत्ली; जगइ दूसरो, निगाह दूसरी; डालत बदलो, राय बदत्नी; दि व्यु चेंजेज़ विथ दि स्टेंड-पे।हन्ट!”, “झोपिनियन्स चेंज विथ दि ऐँगत्न आफ्र विकून आर दि सित्युएशन,”! “110 रा>त्र णा॥1863 जाति फ० #क1त1901707, “0घप्रांणाड 0190808 जा) 016 ४1816 ०01 शाआं0॥, 07 0016 80प8॥01,? !




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