दिग्विजय भूषण | Digvijay Bhushan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Digvimay Bhusan by माधव प्रसाद पाण्डेय - Madhav Prasad Pandey

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about माधव प्रसाद पाण्डेय - Madhav Prasad Pandey

Add Infomation AboutMadhav Prasad Pandey

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
३ [ १७ ] किन्तु उसका निष्कण्यक भोग वें अधिक दिनों तक नहीं कर सके | बलरामपुर की सेनाओं के छौट्ते ही उनके पुत्र ने तुल्सीपुर पर चढ़ाई की | बूढ़े द्विंगा- राज सिंह को उसने बन्दी घना कर जेल में डाल दिया | महाराज दिग्िजयसिंह यह समाचार पाकर व्यग्न हुये किन्तु इसके पूर्व कि वे पदच्युत राजा की सक्षयता कर सकें, पुत्र द्वारा दी गई असह्य यातनाओं ने द्विगराज सिंह की ऐहिक- छीला जेल्खाने में ही समाप्त कर दी | ५ गोंडा के राजा देवी वख्श सिंह और दिग्विजय सिंह में आरम्भसे ही मैत्री- पूर्ण सम्बन्ध था किन्तु एक प्रश्न को लेकर उनमें गहरा मतमेद हो गया | बह था दिग्विजय पिंह का गोंडा के बिसेन राजवंश की कन्या इर्द्रकुँवरि से विवाह | परम्परा से बलरामपुर के जनवारों की कम्यायें त्रिसेनों के यहाँ ब्याददी जाती रही हैं। राजा देवी बद्श सिंह स्वयं बलरामपुर के सगोन्नी पयागपुरके राजा के यहाँ ब्याहे थे | दिग्विजय सिंह के उक्त विवाह से इस सामाजिक मर्यादा की स्पष्ट अवहेलना हुई थी। इस घटना ने अवध के इन दो शक्तिशाली राज्यों में स्थायी बैर का बीजारोपण किया, जिसका परिणाम आगे चछ कर समूचे राष्ट्र के लिये श्रह्वितकर हुआ | १८४७ ई० (सं० १६१४ ) के ग्रथम स्तन्वता संग्राम में जिस समय देवीवखश सिंह ने नवाब का पक्ष लेकर अंग्रेजों के विरुद्ध क्रान्ति कारियों का नेतृत्व किया, दिग्विजय सिंह ने पुरानी शब्ुता की प्रतिक्रिया में फिरंगियों की सहायता करने में ही अपनी आन की रक्षा समझी | अवधकी राजनीतिक स्थितिमें इसी समय एक थ॒गान्तरकारी परिवर्तन उपस्थित हुआ भंग्रेज्ञ रेज़ीडेण्थ्के निरन्तर हस्तक्षेप, कर्मचारियोंकी भ्रशचारी प्रद्ृत्ति तथा सामन्‍्तों एवं चकलेदारोंकी प्रबंचनासे तंग आकर ७ फरवरी १८४६ (सं० १६१३ ) को एक फ़रमान द्वारा नवाबने अवधका शासन ईस्ट इंडिया कंपनीकों सौंप दिया |. इसके फल्लस्वरूप वह अंग्रेजी राज्यका एक अंग हो गया | , सर चाहस विंगफील्‍्ड गोंडा और बहरायचके प्रथम कमिश्नर नियुक्त हुये। रेजीडेन्टने इनसे पहले ही दिग्विजयसिहकी प्रशंसा कर रंखी थी। अतः श्राघरा पार करते ही उसने इन्हें बुलानेके लिये दूत भेजे । दिग्विजय सिंहकी विंगफील्ड से प्रथम मेँट सिकरौरा छावनी ( कर्नेलगंज-गोंडा ) में हुईं। इसी भेंटमें बिंग- फील्ड द्वारा दिये गये निमंत्रणपर विग्विजय सिंहने बादको पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली तथा मसूरीकी यांत्राये की थीं | महाराज दिग्विजय सिंह भ्रमणसे छौठे ही थे कि १८५४७का स्वतंत्रता संग्राम छिंड़े गया.। उत्तर -प्रदेशमें इसका सृन्नपात १० मईको मेरठकी ,छावनीसे हुआ । एके मासके भीतर ही गोंडा और बहरायचमें इसकी छपदें फैल गईं | दिगंत-




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now