श्रीसामवेदस्य | Shrisamavedasya

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Shrisamavedasya by ज्वाला प्रसाद - Jwala Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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खालय सब संपतल्ियें/केटावादेव रूप के पएभाक्तिसेनमस्का रस खाहूं वेदभी उस जगदात्मा के स्वरूप के डूस भ्कारकह॒ता है ५ शा यान नर नकन्य सा | भूमिजन्तरिक्त स्वमेनामएए वाले दाह कन्नी शन्नचारकाविर र्टेह मेंवसने वाले प्ररुष को वेद वाणी चाहती हैं वह स्त्नचारक परुष का भ्यचघने। को सतो ताझे के लिये देता है जैसे वरुण सार सम द्व जले कीधारए करते रे की देते मुझनसलान मे पेन परत 1हिसी मैनेः सैरूचो आोच सच्ची बेमेसेतम्वेविवेः ८॥ पाहले स्टाप्टि की सादिमें प्रादुर्भूत सूर्य रुप बत्म ने बह्लाएडकेमच्य इनशोभन लोक को खपने मकाश से विउ॒ताकेया वह कामनी य- « |मिधावी सूर्यक्षवकाश वान सो र दूस जगत की विविधिरूप दिशाओें, कोनया मूर्स घटपटशादिसोर शम्स वायुश्ादिकेमसव मक्लाएडड कोपकाशन करताहे ८ 'महानारायणोदेवो भ्ताना सक्षणा यवेच्ध विष्णु महेशानो रूपेःपरदुर्दभू चहु ५ महानाएयणादेवता माएयें को रस केलिये बक्ला विष्णु महे झ | रूपसेमकट छुछा ४ 'हिरएय गर्मःसमंवत्तेताये भूतस्य॑जा तः पतिरेक




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