अथ सत्यार्थ प्रकाश | Aath Satyarth Prakash

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रथमसमुल्नास; ॥ ' - र३ मेघ्वर का नाम सगुण” है। जेसे एथिवो गन्धादि जुणां से सगुण और इच्कादि गुण से रहित होने से निगु ण है बसे जगत्‌ और जोव के गुण से छथक्‌ होने से परमेश्वर निशु णऔर सर्वज्ञादि गुणों से सच्चित होने से 'सगुण” है। अर्थात्‌ ऐसा पे काई भी पदाथ नहीं है जो सशुणता और निग्ु णता से शथक्‌ हो जैसे चेतन के | गुण से एथक उहोने से जड़ पदार्थ निगुण और अंपने गुणें। से सहित होने से |, बसे हो जड़ के गुणा से ए्रधक होने से जोव निग्यु ग और एच्कोौदि अपने ! गुझू से सहित होने से सगुण। ऐसे हो परमेश्वर में भो समकना चाहिये।“अन्त- ! यब्तु' निनम्ठु“शोल यस्यथ साधइयमन्तर्यामो” जो सब प्राणि और श्रप्रणिरुप जगत्‌ | के भीतर व्यापक हो के सब का नियम करेता है इस लिये उस परमेश्वर का नाम | | “आत्तर्यामी” है। “थी धसमं राजते स धर्मराज:”। जो धर्म हो में प्रकाशमान और / | अधर्म से रहित धर्म हो का प्रकाश करता है इस लिये उस परमेश्वर का नाम “प््मेराज” है। ( यंमु उपरमभे ) इस धातु से “यम” शब्द सिद्ध होता है। * सर्वानु प्राणिने। नियचक्तति स यम;” जो सब प्राणियें के। कर्मफल देने को व्यवस्था करता और सब अन्यायें से एथक्‌ रहता है इस लिये परमात्मा का नाम “यम” है। (सज सेवायाम्‌) इस धातु से 'भग” इस से “मतुप” होने से “भगवान्‌” शब्द सिर्द होता है। “भगः सकलशर्य सेवन वा विद्यते यस्य स भगवान” जो समग्र ऐश से युक्त भजने के योग्य देल्दसो लिये उस इैश्वर का नाम भसिगवान्‌” है। (मन, न्नाने) धातु से “मनु” शब्द बनता है। यो मन्यते स मनु)” । जो मनु आर्थात्‌ विज्ञानशोल और मानने याग्य है इस लिये उस ईश्वर का नाम “मनु”है ( पृ पालनपूरणयेः ) इस धातु से पुरुष” शब्द सिद्ध हुआ है। “य; खब्यापत्या चरा5चरं जगत्‌ शगाति पूरयति वा स पुरुष:” जो जगत्‌ में पूर्ण हो रहा इस लिये उस परमेश्वर का नाम “पुरुष” है ( डमज घारणपोषणयथेः ) “विश्व” पूर्वक इस धातु से विशन्भरः” शव्द सिद्ध होता दे । “यो विश्व॑ बिभसि घरति पुण्णातिं वा 'स विशवम्भरे। जगद्ोशखरः” जो जगत्‌ का धारण और पोषण करता है इस लिये उस परमेश्वर का नाम “विश्वस्भर” है ( कल संख्याने ) इस धातु से “काल” शब्द ना है। “कलयति संख्याति सर्वान पदार्धान स कालः” जो जगत, के सब पदाथ ओर जोवों को संख्या करता है इस लिये उस परमेश्वर का नाम “काल” है।“यः शिष्यते स शेष” जो उत्पत्ति और प्रलय से शेष अर्थात्‌ वच रहा है इस लिये उस परमात्मा का नाम शेष है ( आप्न व्याप्ती ) इस धौत से “आप्त” शब्द सिद्ध होता ते।“यः सर्वान ध्रमातमन आप्रोति वासवे धर्माव्मभिराप्यते छलादिरछ्ितः: स आप्तः? जो सत्योपदेशक सकल विद्यायुक्ष सब धर्माताओं के प्राप्त होता और घर्माव्मात्रों से प्राप्त होने योग्य छल कपढादि से रहित है इस लिये उस परमात्मा कलाम | __...ःःःःः 9 खखखसखसफखफखफखफखसफ्फकतघऑसछ७०खऊयर् रृ ृउ_ृ _अजिण:




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