हिन्दी महाकाव्य सिद्धान्त और मूल्यांकन | Hindi Mahakavya Siddhant Aur Mulyankan

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Hindi Mahakavya Siddhant Aur Mulyankan by देवीप्रसाद गुप्त - Deviprasad Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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महावाय वो परिभाषा १३ ३ नाठटवीय सधिया वा लिवाह । डे तायबा का बारोटास गुणा से यतव एवं उच्चकुतान हासोा। ग़ परश वा एकाधिय राजा भी नायर हा सकते है । ५ शूयार वीर और शान्त रसा मे स णक की प्रमुसवा एव जे य रसा बा सतायव होना । ६. अर्तुत्ग फल प्राल्ति [पम्त जब काम साल) । ७. संग संख्या जाद से जरिए सगा सगाते में छल परियतत के निधस या लनुपावल | ८. वाशयासर्म्म में नमस्कार मंगवाचरण जोशीव्चन जाहि। साजन स्तुनलि टजने निहा | 9० साया, यूथ रजनी अठाय प्रात मब्यात्ष भगवा परवतते हे ऋतु सागर संयोग विप्रवम्भ मुनि स्वेग पुर बेते यात्रा विवाह मजणा पुश्रनीप्ि जानि वा सागापाग चणन हाना । ११ भतटाशाय का नामकरण बचि क्या अथवा शायत्रा पर आधारित हाना । सर्गों का नाम कथा के जाधार पर हांतो चाहिए । 8 भगवाबा महाबाय ततनका नायर सर । संद्ृश क्षत्रिया वाषि 'ाराटाच गुधान्वित । एक्बयभवा भूपषा कुतनजा बलवाएि बा॥ हार बार शातानाभवा/द्वों र्सा इृष्यन । अग्रातमि सर्वेग्पि ससा सर्यते लोटके संथम्र ॥ श्निरामाझूबव वत्तमयद्टा मजफ्जनाभ्यभ । चापारस्तम्थ व्गा स्यृत्तत्व थे फज भंवत्त ॥ अली नमस्क्ियाशार्वों वस्तु निर्रेश एवं वा। वबित्िन्शग खताहाना संता चै॑ ग्रण्कातनम ॥ एज उत्तमंय पथरवसानय वत्ततर । नानिस्यया नालिताधा सथा जप्याधित्रा है ॥ नव बत्त भय क्यायि संग वम्चन दृश्यत | सर्याति भाविसगस्थ क्पाया भूचन भेजल $| संध्या सुर्थे८रजनी प्रलेप्वास्त वासरा ) प्रावमप्याद्ष. भूगया. अपवतन्‍नन्सायरा ॥ सांग विप्रतम्भी चु सुनिस्वगपुराखश । रण प्रयाणापयमम-त युव्ाल्याल्य ॥ वणदाया यथा यांग मसामाफ्मा जमी नहे। केयव तर्य या नाता शामवम्थतस्स्थ था ॥। तामास्म _ सर्मोपाट्यकक्‍्धमा संग नाम तु। भम्मिप्रा्ं पुन यथा भवत्यास्पानन्यनवा ॥ -+विश्वनाथ साहित्यदषण, परिच्छेल ५, «१५०४




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