चित्रकला का इतिहास | Chitrakala Ka Itihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घृष्र ऐतिहासिक काल की चित्रकतता 15 थे । उतकी इतियाँ प्राचीन भारत वी चित्रतला वा गौरव हैं। इनको ”खकर बतसात समय व चित्रकार दाता तल बगुरी दर जत हैं। इन चित्रकारों ने अपना इतियां मे सब ब्रकार की टरलतिया का अपनी तूलिका से भली प्रकार दर्बाया है 1 जब हम प्रार्गतिहासिक काल कौ चित्रवला को दसत हैं ता चात हाता है कि इस काल मे वला झृतिया का अधिक उन्नति मिली । बतसान कान वे वित्रवापर दल बांटा इतिया का ज्यासितिक अवकार बहन हैं | बुछ भी क्या न है| लवित यह कह बिना नहीं रहा जा सरता वि प्रागतिहद्सिक काल के चिपकारा को रेसाणा का अच्छा भात था । इनबी बनाने में बोण आया भऔर वत्ता आदि का प्रयोग इस ढंग से विया गया है कि उनको दखते हो हृदय कट उरता है कि इनम वेवल आत्मा डालना और रह गया है । यदि ईश्बर उस कान के चिठकारा का यह शक्ति प्रट्तन कर दता, तो ये कलाकार आमा भी डाल देत | रस समय की क्ला-इतिया से ज्यासितिक आवारा की संख्या अधिव है । वतमान चिश्रक्ार इनको ज्याभितिक अलकार वहत हैं और इसका बजा-हूति स प्रथव कर दिया है । चित्र 3--प्रागतिहासिक काल का ज्यासितिश आकारों का चित्र क्टीलथ पर इन कलावारा ने रिक्त स्थान के आभूवित वरने में पद्म पद्िया तथा पृत्र पत्तियां को बनाया है जिनको यतमान काज मे प्राततिव अलवारा के नाम से पुकारा जाता है । अलवारो को देंसन से भव प्रवार प्रतात हो जाता है कि प्राचीन वित- हारा की ज्यामितिद' आवारा बा अच्छा अम्यास था जिनका इ'हाने अपनी हतिया में खुदरता स दिखाया है ।




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