पुरुषार्थ - चतुष्टय | Purusharth - Chatushtay
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
48 MB
कुल पष्ठ :
434
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अअिन्थन
कलियुगके प्रारम्भ ल्लोते ह्ली मह्नर्षि वेद-ठ्यासको यह्ल
खिण्डिमघोष करना पछा +कि--
( (९ को + ९ ८ ० ३5 कि
ऊध्वबाहुविरोस्थपय न हि कश्चिच्छुणोति मे।
९5 ए आओ ४
घमोदथश्च कामश्व स॒ किमय न सेव्यते ॥
पष्ठ है कि तबसे ही धर्मका ह्वास प्रारम्भ ह्ञो गया था । धर्म
ओर समाजका परस्पर अद्दगठ सम्बन्ध है। वस्तुत: समाज
घर्माचरणपर ही अचकम्बित है । अत समाज 'बियछा तो मनुष्य
क्यों झुघधरेगा ? और मनुष्यका सुधार न ह्ो तो समाजका
सुधार कसे ?
मह्ात्ति व्यास मगवान्के अज्ञावतार थे। वे निर्शिचितरूपसे
त्रिकालज्ञ थे। भ्रूत+ भविष्य और वर्तमानको हरतामऊकवत्
जानने वाले थे और सब लोकोका ज्ञान रखते थे। मह्लाभारतमे
क्या छुआ क्या नही छुआ, केसे समय-समथपर घमावपरीत और
बीभत्स घटनाएँ छुड्ढें ? मीष्म-ब्रोण भादिके समक्ष मरीसमभामे
रुकवन्त्रा द्रौपदीका वसच्त्राकषण+ अजद््वत्थामाद्वारा पाण्छवोके
सोये हुए नालकोकी हत्या और उत्तराके गर्भस्थ शिक्षुक्े बधका'
प्रयास - ये तोन जघन्यथतम अपराध हुए और कैसे घमकी उपेक्षा
को गयी--यह् सब देखकर मह्वर्षि व्यासजी अधर्माचरणको
विभीषिकासे सिल्वर गये । उन्हें महाती वेदना हुई 1कि कालिके
प्रारम्ममे ढी यह्वष दुढंगा है तो भागे क्या होगा ? यह्नी भयका
कम्पन उनके ठपर्यक्त इलोकमे मुर्त है । इसी वेद्नाकी भाह्ञ ऊपरके
इोकसे फूल रह्ढी है ।
मह्लर्षि व्यासको जो आठाड़ा थी, वह्ल भाज समाजमे प्रत्यक्ष
है । वर्तमान समयमे सर्वत्र, जीवनके समी क्षेत्रोमे उच्छु्डू ऊता,
उद्दण्डता, अ्ष्टाचार; कुटपाठ, चोरी-छकेती ड्ुत्यादिका नोलनाका
है | हमारा जो नेतिक, चारित्रिक क्वास स्वतन्त्रता-प्रातिके ३३
वर्ष्षके भीतर हुआ; वह्ठ बहुत ही अशुभ ह्ै--बहुत ही ज्ञोचनीय
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