मास्टर खेलाडीलाल एंड सन्स | Master Kheladilal And Sons

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Master Kheladilal And Sons  by प्रेमवल्लभ त्रिपाठी - Premvallabh Tripathi

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about प्रेमवल्लभ त्रिपाठी - Premvallabh Tripathi

Add Infomation AboutPremvallabh Tripathi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
#ऋब५, कल, .... यद्यपि मेरे सहश अल्पज्ञ और अपुण्यकर्म्मा के लिए ऐसे पवित्र कीर्ति- 1. शाली रुत्कबि के स्तवनीय अज्ञरों पर लेखनो उठाने का साहस करना ही का उपहासालद और असम्नव था, तथापव जिव परमादार अन्तःकरणु« बाले, कारशणिक-शिरोमणि ने मुझ पंणगु पर निष्कारण ही करुणाद्र है छात्रा- बस्था में ही मुझे इस अछ्ू त और सुदुलभ प्रन्थरत्न का जीणेद्धार रूप सेवा के लिए प्ररित कर ऐसे अवोग्य प्राइृत शिशु पर भी वाहत्सल्य प्रकट किया, उस कॉपीनमात्र परिकरवाले अचिन्त्यानन्तकरुणाशक्तिशाली 'दिगम्बर' का में जन्म-अन्मान्तर से ही ऋचणोी हूँ । ; साथ ही साथ जिन उदारचेता मंहानुभावों की सद्भावना से एु इस पुनोः् में उत्करिठत, प्रदत्त एवं सफल 2 मई व उन. सत्कीसिशाली दे। सहृदय और मान्यवरों के श्रद्धाललि समर्पण किये से नहीं रहा जाता | द्विवेदी, जिनके सरस्वती! पत्र में प्रकाशित अतीव हृदयाकषक उद्दाम लेखों ने ही मुझे सवप्रथम इस ग्रन्थरतन के समास्वादन के लिए . तथा बिना परिचय के जिन्होंने ऐसे अयोग्य शिशु की त्रटिपूर्ण, प्राथमिकी पुस्तक धंदान कर आथ्िक सहायता में म पं नहीं होने दिया ; अथवा यों कहना चाहिए _सम्पत्ति-विहीन शिशु से इसका निर्विन्न सम अवलम्बन के समाश्रयण का फ सनामधन्य, प्रात:स्मरणीय, आचाय पं० महावीरप्रसादजी + ज्ञालायित कर इन अक्षर-रत्नों पर लेखनी उठाने के लिए उत्कश्ठित किया; | - कृति के हृदय से अपनाकर इसके प्रकाशन में सहायता का उद्योग करने में के ० है - कष्ट उठाया। और द्वितीय महानुभाव हैं ज्भातरज्ञ*-निवासी पूज्ययाद यूं गड़ाशड्र जी मिश्र एम० ए० (1॥9बवंका ० फिस्पश्ा88 ते ०३ मु हे रा पमारएआंए) महोदय, जिन्होंने इस काय के लिए आंरम्म से ही अपनी:




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now