व्याकरण - महाभाष्य | Vyakaran Mahabhashy
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
728
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रथम भाद्विक ११
कि पुनराझुतिः पदार्थ आहोस्विद् द्ब्यमूं। उभयमित्याह। कर्थ
शायते। उभयथा ह्ाचाय्येंण सूत्राणि पठितानि। आहर्ति पदार्थ मत्या
जात्याख्यायामेकस्मिन्वहुवचनमन्यतरस्याम् इत्युच्यते । द्वव्यं पदार्थ मत्वा
सरूपाणाम् इत्येकशेष आरस्यते 1
क्या पद का क्षर्ष--जाति दै अथवा दृच्य ?
वैयाकरण कद्दता है--दोनों (जाति भर द्वग्य) ।
(यद्) कैसे जाना जाय ?
दोनों क्यों को स्वीकार कर साचाये पाणिनि ने सूत्र पढ़े हैं।
पद का क्षर्य जाति है ऐसा मान कर जात्याख्यायाम-इत्यादि सूत्र पढ़ा है ।
अब्य पदार्थ दै ऐसा स्वीकार कर सहपाणाम् इस्यादि से एक शेष क्षारम्म किया है|
१ व्याकरण शान में कसी एक पक्ष से सर्वत्र व्यवस्था न हो सकने से कहीं
जाति को पदार्थ माना है और क्हों व्यक्ति ( द्रव्य ) को । यदि एक ही पक्ष का सवेत्न
आश्रयण हो, व्यक्ति ही पदार्य है ऐसा सर्वत्र इष्ट हो तो सम्पश्चा बीहय यहां व्यक्तियों
( धान्य के कणों ) का बहुत्व द्ोने से बहुवचन सिद्ध है. ( साध्य नहीं ) अतः उसके
डिये ज्ञात्याद्यायाम॒-- इत्यादि बहुबचन विधान-रूप यान सूत़कार क्यों करे । और
यदि जाति हो पदार्थ है ऐमा मत अभिमत हो तो जाति नाम एकरर्थ होता है,
उसे कहने के लिये एक शब्द का ही प्रयोग प्राप्त होता है, उसी से तज्तात्यवच्टिन्न
सकल व्यक्तियों की उपस्थिति हो जायमी, अतः अनेक व्यक्तियों को कद्देने के ल्यि
अनेक शब्दों के प्रयोग का प्रसक्ष ही नहीं, तो फिर सरू्पाणाम् एकशेप --
( समानरूप वा़े शब्दों में से एक रहे, अन्य निरत हो जाय एक विभक्ति परे होने पर )
ऐसा ग्रोग-निर्माण करने का यन क्यों कया। इससे प्रतीत होता है कि यहाँ
आचार्य पाणिनि व्यक्ति पदार्थ है ऐसा मान रहे हैं। यहा इतना विज्येप जान लेना
चाहिये कि जद्या जाति पदार्थ होता है वहा जाति में क्रिया का अन्वय न हो सकने से
जात्याश्रय (जाति के अधिष्ठानभूत ) व्यक्ति का जाति द्वारा बोध होता है ॥ ब्राह्मणो न
हम्तव्यः । यहा ब्राह्मण झब्द जातिवाचक है, हनन क्रिया म्राह्मणत्व जाति में संभव
नहीं, उसका व्यक्ति में ही अन्वय हो सकता है। जहा व्यक्तिपरक निर्देश है--इमा
गाव; सुदोहा*, वहाँ जाति का उपलक्षक के रूप में बोध होता हैं। गाव >गोत्वो-
पल्क्षिता-गोल्वावच्छिज्ञा गोव्यक्तय+-मास्नादिमन्त: पदार्चाः 1
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