चिट्ठी पत्री भाग - 2 | Chitthy Patry Bhag - 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
68 MB
कुल पष्ठ :
277
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहान्त हो गया जिसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। १३ साल की उम्र में ही उन्होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्यासों से परिचय प्राप्त कर लिया। उनक
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)११ | जैसेख कुमार
स्पेशल बेल पुदरात
२१२ फरबरी ११३९१
जाजू जी
प्रापका पत्र स्िप्ता | उससे एक ही रोश पहले एक कार्ड मेसे सिखा था।
हंस की पौर कितादो की प्रतच्ा में हूँ । म स्वये प्रापसे मिलने को मूशा हूं।
आप ही चर पर हिस्ली प्रा सकेंगे इससे ठो बढकर भाग्य हौ क्या होया। मैं प्रदले
महीने की समाप्ति तक घूर्दूवा | ठीक तिथि लिखना तो संमग गहीं। कस्पाल
का जिशेपांक कद तिकशता हू? मे प्रबश्य उसके छ्लिए सि्ूंगा लेकित जान पड़ता
है प्रमी चली सहीं है । धातकी सेवा पौर पाड़ा पाप्तन के लिए मे तैयार हूँ ही ।
जब प्रौर थेसी प्रजा होगी हस के लए लिखने का सत्त कहँसा। प्रापका
'फरबरी का प्रंक केश तक तिकलेगा कपोकि उस कहाती की हिन्दी प्रन््थ एनाकर
जो मेरा प्प्रह्न तिकाल रहे है उसके सिए पश्रावश्यकठा है| कया यह हो सकेगा कि
उसकी प्रतिलिपि धम्बई पहुँच चाय ?
पौर धार स्पा नवसकिसशोर प्रेस से सम्बन्ध तोड़ने का इराश रूूते हैं जो
साँद मे छेठ छाते ये छारे मे लिखते है ? 'माघुरी का क्या ह्वाल है। विशेष सब
कुशल है।
बितीत
बैनेश कुमार
१०
लबल किप्तोर हुरु डिपो, स्षतऊ
१८ दरबरो ११३१
प्रिय भैनेंद्र
प्रापक्ती ग्राप्तोचताएँ मुझे पहले ह्वी मिल गई छीं पर जबाद बी ऐसी कोई
बात त थी । इप से दिसम्थ से सिर रह हूँ | छम्ौ धासोचताएं हंस में था
रह्दी ई | ध्रापने 'सड़ कंदार' को पसंद किया है! मैं छो पद ते सका था | करण
वह है कि उपमें भागे अलकर कुछ रस भाता ह धौर में प्राहि के इस बीस पस्ने
पडुकए ही सभौर हो बया भांगे पढ़े बा पेय ल रहा ।
'हश” झ्मौ तक गहीं प्राया | शापद भाज मिल थाय। इधर कपशी में जबबार
मे बहुत बढ़ा दंगा हो रडा है समौ कारोभार बंद है प्रेस भी बंद है, पहुँ तक कि
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