चम्पूभारतम | Champubharatam

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Champubharatam  by श्रीराम चन्द्र मिश्र - Shriram Chandra Mishr

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्रीराम चन्द्र मिश्र - Shriram Chandra Mishr

Add Infomation AboutShriram Chandra Mishr

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
डे सम्तालोचना । श्& आबूषमिव बकच्रछाक्रान्तां, पाताठनगरीमिव शपत्यहं वर्घभानवलिशोकाम, लअड्राज्यसी माम्‌ इव सूर्यतनयालनुकूछप्रतिष्ठाम , रविरधाइघुरमिवैकचकासः । ग़छके निर्माणमें ख्वातकीसि बाममइने विरोवामासके दारा गश्यका बढ़ा गौरव बढ़ाया है, उस विरोधामासका एक इष्टान्त इस चन्पूमारतर्मे मी देखिये-- विश्ल्ुल्दर्घितगिरित्रजनमपि खाछुलाखेद्तिमहीस्॒त्छुछम , जराघटिवदेह- मपि देदीप्यमानवलप्तस्पदम्र , जाश्माजेतारमपि पदार्थापहारलाधरितारस , सागध- सपि विगीठब्यापारण गिरिन्नज, जरा, मागघ आदि पदोका इलेघ इस विरोधामासको चमका रहा है । इसी तरह अन्य अल्झारंका मी यथोचित समावेश किया गया हैँ । यद्यपि इस चम्पू- काब्यमें गयकी मात्रा कुछ कम है, केवरकू कथामागकौ जोड़नेदी कढ़ीका काम गद्य खण्डोंसे लिया गया है, फिर भी कथानकके विपुल्ताकृत वैचित््यके चलते पाठककों दृदयों- दवेग नहीं हो पाता 1 ऊपर दिये गये उद्धरणोसे स्थालोपुछाकन्यायद्वारा आपको इस चम्पू अन्यके साद्ित्य- चमत्कारकी झांकी मिल गई दोगौ विज्वेष इस अन्धमें ही देखें । पात्रात्ोचन इस गझनन्‍्यमें पात्नोकों नया रूप नहीं दिया गया हैं। मदहामारतके पात्र अपने-अपने रूपमें हा उपस्थित किये गये हैं । मद्दामारतके पात्र इतने प्रसिद्ध ६ कि उनकी मालेचना मनावदवक है । इस सन्वन्धर्में इतना और जान लेना चाहिये कि जब कवि रसप्रकर्षसष्टिके लिये कथामें मेद उत्पन्न करते हैँ उस समय कविकल्पित पात्रचरिश्रका आलोचन कवि- छन्पादित चमत्फारातिशवकी इृष्टिते आवश्यक दो जाता है चन्यूमारतके पात्रोके -चरित्तमें कोई मौलिक परिवत्तंन नहीं किया गया है। मद्यामारतमें उनके चरितमें जो न्‍्यूनाधिक्य है उसे ज्योंका त्यों. रख दिया गया है। इसलिये यहाँ पात्रोंको आलोचना नहीं दी जा रही दे । चन्पूभारत की दीका अम्पूमारतकी दो टीकायें मुझे पदनेछो मिल सकी--१. कुरविकुलचन्द्र रामकवीनद्र- कहुत दीका ठया--२- नारायण ओऔडझण्डेझत थौका। इसमें दूसरी दोका अत्तिसंक्षिप्त दे । पहली टीकामें लो छुटियाँ मुझे दोख पड़ीं, वे नीचे दी जा रही हैं-- १--पाठ झुघारनेका यत्न न करके जो पाठ जैदा देखा उसौकी टीका करनेके लिये बात अयत्न किया गया है।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now