पउमचरिउ [खंड 2] | Paumchariu [Vol. 2]
श्रेणी : अन्य / Others
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
392
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)एक्कवीससों संधि 1७
हुए भी, गुण (प्रत्यंचा और अच्छे गुण) पर नहीं चढ़ रहे थे,
इसलिए अवश्य वे छोगोंकों अनिष्टकर थे ॥ १-६ ||
[ १३ ] सब राजाओंके पराजित होनेपर वछभद्र और वासुदेव
सीताके स्वयंवर-मंडपमें पहुँचे | तव छाखो राजाओंको दूरसे ही
हटानेवाले रक्षक यक्ञोंने दोनों धनुप बताते हुए उनसे कहा,--
“लीजिये, अपने-अपने प्रमाणके अनुरूप इनमेंसे एक-एक चुन ले ।
उन्होने समुद्रावत और बजावते घनुप हाथमें लेकर मामूली
धनुपोकी भाँति, उनपर डोरी चढ़ा दी, तब देबबुंदने फूलोंकी वर्षा
की । राम-सीताका विद्वह हो गया, जो राजा स्वयंवरमे आये थे
वे उदास होकर अपने-अपने नगर चले गये । दिन-बार-नक्षत्र गिन
छगनके योग्य श्रहोको देखकर, ज्योतिषियोने भविष्यवाणी की,
/इस कन्याके कारण वहुतसे राक्षसोंका बिनाश होगा” ॥१-ध॥
[१४ ] शशिवद्धेन नामक राजाकी अठारह लड़कियाँ थी |
सभी चन्द्रमुखी कमछदछकी तरह आयत नेत्रवाढीं, कोयछ और
वीणाकी तरह सुन्दर स्वरवाढी थी। उसने उनमेसे दस रामके
छोटे भाश्यो (भरत और श्रुन्न) को तथा शेष आठ
लक्ष्मणको विवाह दी। द्रोणने भी अपनी सुन्दर कन्या लच्तमणकों
विवाह दी । बैदेहीके अयोध्या आनेपर राजा दशरथने
धूमधामसे उत्सव किया। त्रिपथ चतुष्पण और कथान््थान
केशर और कपूर-बूछिसे पूरित थे । चन्दनका छिड़काव हो रहा
था। तरह-तरहके गायन ओर गीत गाये जा रहे थे। देहली
मणियोसे रचित थी, और मोतियोके दानोंसे 'स्गावलीः बनाई जा
रही थी। सुबण और मणियोसे वने, देवताओका भी मन चराते-
वाले तोरण वॉधे जा रहे थे । सीवा और रामके (भर) प्रवेशपर
छोगोने जयजयकार किया । वे दोनों भी, साकेतमे अविचल र्ति
सुखका आनन्द लेते हुए रहने छगे॥ १-१० ॥
२ छ
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