श्री सहस्त्र गीति: | Shri Sahatra Giti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
564
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)+ स्रियेनमः ६
श्रीमते रामानुजाय नमः
पु अथ पूके वक्तव्यक्ू ६
शठकोपछुनी न्द्रनिर्मिता सुभखक़्तावलिरत्नमालिका ।
पु ५ 0 रे
हरिभक्त्तजनेपु भापया सहसंबध्य॑ समप्पते मया ॥१॥
इस संखार में घ्राणीमात्रकी भद्तत्ति सरल सुलभ वस्तुकी और दी होती हुई
देसी जाती दे । यही कारण हैं कि जिस समाजका अथवा संप्रदायफ्रा भ्रन्थसादित्य
सुलभ सरल द्वोता है, उसऊा विस्तार बढ़ी शीघ्रतासे होता चला जाता दे । इसी
कारण भत्येक समाजके धर्माचायंको समयका रुस
पर देसकर धर्मप्रचास्के लिये अपना
ग्रन्थ साहित्य सरल और खुलभ चनाना पड़ता दे।
भ्रीरामाछ्ु जसस्पदायका भ्रन्थसा द्वित्य पुष्लरुपमें रहता हुआ भी विद्वानोंके
पुस्तकालयोमें दी सीमावद्ध है। साधारण शित्तित श्रीवेष्णबोंकों उसका दर्शनभी डुलेभ
है। फ्योंकि प्रथम तौ वे भन्थ संस्कृतमें है, दूसरे अमुद्वित द। यहद्दी कारण है कि
ओवेष्णब नामधारी बड़े बड़े धुस्धर विद्यानमी अपने घरके शानमद्दानिधिके
उपभोगसे चब्चित रहजाते है! इसी कारण उत्तरदेशमें श्रीसम्प्रदायके रहस्य
बिद्वानोंका अभाव सा हो गया है. और होता दी जारद्य है।
इस अभावको मिटानेके लियेदी दमने श्रीबेप्णबग्रन्थ मालाका प्रकाशन कार्य
प्रारम्भ किया है। इस अन्थमालामें अभीतक कुछ कर्मकाएडके अन्य छूप जुके हैं ।अय
इसके द्वारा रहस्यग्नन्थोंका प्रकाशित होना भी प्रारस्त हुआ है। इसीफा यह अन्य छट्ठें
मणिके रूप में हे । यह अन्ध श्रीसंम्प्रदायके आद्याचाय' श्रीशठको पमुनिने अबसे पाँच
हजार तर्ष पहले प्राणियोंके हक लिए अतिमघुरपद्योंमे बनाया था। जिसका
अध्ययन्त करके अस्संप्य नर नार भचसागर नित्य द
ओह, मकिष्यन हे गे तरकर नित्य परमानन्दके भागी बन गये
यह. भ्रन्थ भ्रीवैष्णय समाजमे पूर्णरूपसे परसि ल् लि
इलमे देतिहासिक विषय कु लिखना पि्पेपर हो हे बल कह
सारांशको वता देनाही दस पर्याप्त समभते हैं। इसीसे इस पन्थकी हिमा और
उपादेयता पाठकोंकी समभमें सहज से ही आजायमी | मा आ
इस भन्थमें १० शतक हं झट
दशक में ११ गाणा हैं (कलीक दा री कस (० दशक हैं। प्रत्येक
छठे दशकर्म २२ गायाये हैं ) इस पकार दशशतलक ओर सी के >, चमशतकके
यद्द धन्य पूरा हुआ है। इशोंका अर तो है के » व दशक तथा १११३ गाधामें
दिया है। और शतकोंका अथे लत मे दशरुको आदियें दो लिख
समभना चाहिये- घुरुपरम्पण्कक इस प्रकारसे पाठ महान॒भावोंको
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