षटखंडागम | Shatkhandagam

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Shatkhandagam by श्री हीरालाल जैन - Shri Hiralal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४, २; है) रे-] वैयणमद्दाढ़ियोरे वेय्णाणिक्लेवी [५ एत्थ सोम अणियोगदाराणि त्ि एद देसामासियवयणं, अण्णेत्ति पि अणियोगद्दाराणं मुत्तजीवसमवेदादीणमुवर्भादो । एदेसु अणियोगदरिंसु पढमाणियोगद्धारपरूवणइमुत्तरसुत्त भणदि्-- वेयणणिक्खेंवे त्ति। चउब्विहे वेयणणिक्खेंवे ॥ २ ॥ वेयणणिक्खेंव ति पुव्चुहिदवत्याहियारसभालणई भणिदमण्णहा सुद्ेण अवगमाभावादो । एल्थ वि पुच्वे व ओआरस्स एआरोदेसो दइव्वों | वेषणणिक्खेवे चडब्बिहे ति एदं पि देसामासियवयण, पज्जवड्डियणए अवलंबिज्जमाणे खत्तकाला्दिवियणाणं च॒ देसणादो । णामवेयणा ट्रवणवेयणा दुब्बवेयणा भाववेयणा चेदिं ॥ ३ ॥ तत्य भइविहबज्शत्यागार्टंबणों' वेबणासही णामब्रेयणा । कधमप्पणों अप्याणम्दरि यहाँ ' सोलह अज्॒थोगद्वार ! यह देशामशक घचन है, क्योंकि, मुक्त-जीव-समयेत आदि अन्य अतुयोगद्वार भी पाये जाते है । अब इन अलुयोगद्वारोमेसे प्रथम अनुयोगद्वारकी प्ररुषणा करनेके लिये उत्तर सूत्र कहते हैं-- ः अब वेदनानिक्षिपका प्रकरण है । वेदनाका निक्षिप चार प्रकारका है ॥ २ ॥ यहां वेदनानिक्षेप ' यह पद पूर्वाहिए अर्थाधिकरका स्मरण फरानेके लिये कहा है, अन्यथा इसका खुख्पूर्वक ज्ञान नहीं हो खकता है। यहां भी पूथ्षेके समन ' एए छच्च समाणा ! इस खुबले ओकारके स्थावम एकारादेश समझना चाहिये । 'वेदतानिक्षेप चार प्रकारका है! यह भी देशामर्शक वचन है, क्योंकि, पर्यायार्थिक्त तलयका अचरम्वन करनेपर स्लेत्रवेदना व कालचेदना आदि भी देखी जाती हैं। नामवेदना, रथापनावेदना, द्व्यवेदना और भाव॑वेदना ॥ ३ ॥ उजन्रमेसे एक जीव, भनक जीव भादि आठ प्रकारके बाह्य अथका अवरूमस्बन न करनेवाला 'वेदता! शब्द नामबेंदना है । शुका--अपनी अपने आपमें प्रचुत्ति केखे हो सकती है! १ संतपरूचणा भा १, ६. १९. ३२ प्रतिषु “ वेयणासद्दा ” इंति पाठः । ३ प्रति “ कधमृष्पण्णो * इति पाठः |




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