आनंदामृतवर्षिणी | Anandamritvarshini
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
170
श्रेणी :
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No Information available about मुंशी नवल किशोर जी - Munshi Naval Kishor Ji
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)८... ५. आनंन््दाद्तंबषिणी। ७
यू० 1 जा एक चतनन््य महानद शुब्ब्रह्म नित्येश्रक्त
. था माथापाहिते हुआ इंड्वर १ आर ओही चेत्तन््य सम-
छिसक्ष्म उपाधि करके उपंहित हिरण्यगर्भ ९ भर वोही
चेतन्य समष्ठि संथूछ 'उपाधि करके उंपहित विराद-३
इन तीन भावाक प्राप्त होता मया और ओहीं चेतन्य
अंविद्योपहित हुआ प्राज्न $ ओर व्यष्ठि सक्ष्मं उपाधि
करके उपहित तेजस ९ ओर व्यष्ठटि स्थछ उपाधि-कर
उपहित बिंश्वे ३ इनेतीन- भावों के नानाग्रकोर का
जै होता भया फिर इृंश्वरं जीवाके घम अथ काम मोक्ष
के लिये सष्टि स्थिति संहार कू करते भये घर्मादिं में
मोक्ष मरूय है ओर तीनिं धमादि गोणहें ओर घमादि'
तीनके दो दो फरलहें सख्यफल पंरम्पशा करके तीनोंका
मोक्षहे ओर स्वर्गांदि गोण हैं धर्मका सेख्य फल मोक्ष
है ओर स्वगांदि गोणंह स्वगादि फल जो वेदोंम कहे
हैं वे ऐसे हैँ जेसे-बालककी शोमाके लिये कानकेंदन कं-
शनां ओर मोदकादिको फल कंथन करदेना अभिप्राय
तो उन्हों का जोहे सो हे क्षति माताके सहृश हित ॥
[ ०१1 परिणाम अन्त सखही जिसके॥'
_ 'मुँष) चाहनीवांली है जसे- कियीका पृत्र' राश्तेकी
'उंतिकी खांयाकरताथा उसकी मोती ने उंसकूं बहुंत:अं-
रजा उसने में सीना हारकर सात॑नें कही हे पंच्रे | यो ग॑-
'गाजीकी झत्तिका ख़ायांकर बहुँते सन्दरं है वियारा:साता
का अभिश्राय-गढ़ाजीके रुत्तिका के खिंलानि-मे नही है.
रस्तिंकी उततिकाके बंजने में उसका अँमिश्राय है पसह।
वो बख जीव रास्ते की झत्तिकीकी नह शब्दीदि वेंषेयाक
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