महाभारत भाषा हरिवंश पर्व्व भाग - 1 | Mahabharat Bhasha Harivansh Parvv Bhag - 1

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Mahabharat Bhasha Harivansh Parvv Bhag - 1  by मुंशी नवल किशोर जी - Munshi Naval Kishor Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इस यन्त्रालय में जितने प्रकार की महाभारतें छपी है उनकी सी नीचे लिखी हे ॥ अहाभारतदुपणु काशानरशकूत ॥ । <>७<५ डर जो काशीनरेशकी आज्ञानुसार गोकुलनावादिक करी रबरों ने अनेकप्रकार के ललित छन्दों में अठाग्हपव्य और उन्नीसवें हसििश को निर्माण किया यह पुस्तक सर्वुपुगण ओर वेदफा सारहे वरन वहुधालोग इस विवित्न मनोहर पुस्त- को पंचमवेद बताते हैं क्योंकि पुराणान्तर्गत कोई कथा वे इतिहास ओर पेद्‌ कथित धर्माचार की कोई वात इससे छूट नहीं गई मानों यह एस्तक वेदशास्तर का पूर्णरूपहे अनुमान ६० वर्षफ़े बीते कि कलकत्ते में यह पुस्तक छपीवी उस समय यह पोथी ऐसी अल*्य होगई थी कि अन्त में मनुष्य ५०) रु० देनेपर राज़ी थे पर नहीं मिलतीबी पहले सन्‌ १८७३ ई० में इस छापिखाने में उेपीयी और क्रीमत बहुत सस्ती याने वाजिवी १३) थे जेसा कारखानेका दस्तरहे ॥ व्‌ दूसरीवार डबलपेका बडे हरफों में छापी गई जिसकी अवलोकन क- रनेवालों में बहुतही पसन्द कियांहै और सौदागरी के वास्ते इससे भी कीमतमें फिफायत होसक्की है॥ इस महामारतके भाग नीचे लिखे अनुसार अलग २ भी मिलतें हैं ॥ पहले भाग में ( ९ ) आदिपव्न (२) समापव्य (३) बनपतन्‍्न ॥ दूसरे भाग में ( ४ ) विसाट्पव्य (५) उद्योगपर्व्व (६) मीष्मपन्‍्न (७० द्रोणपतव्त ॥ तीमरे भागमें ( ८) क्एयर्व्व ( £ ) शल्यपत्व ( १० ) सोध्िकपव्य (१३) ऐपिक वे पिशोकपर्य (१३) खीपव्य ( १३ ) शान्तिपब्ब राजबंस, जाप- छ्वम्में, मोक्षयर्म्म ॥ चौयेभाग में ( १४० शान्तिपर्ण दानधर्म व अश्वमेधपत्य ( १४) आज मवासिकपर्य ( १६ ) मौसलपन्ने ( १७ ) महाप्रस्थानपन्य ( १८) सगारिहि ए व हखिशपर्व्व ॥ 2 5 दृ




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