कुरुक्षेत्र सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक सिंहावलोकन | Kurukshetr Sanskritik Aur Aitihasik Sihavalokan

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Kurukshetr Sanskritik Aur Aitihasik Sihavalokan by कुंवर बालकृष्ण - Kunvar Balakrishn

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१९ प्रतध्च पापास्मुध्येक्रमेप में प्राषितों व८े। छुदाएब सीष श्रूत्रा मे भवेय्रुमु वि विश्ुता'॥ एवं. भविष्पतोरयेव पिठरस्तमपाद्र वन । तह क्षमस्वे्वि निपि पिघुस्तत” स्व विरयम हू ॥ हेपाँ छमीपे यो देशो छुदानां रपिराम्मसाम | समस्तपदञ्चक मिरि पुष्य सत्‌ परिकोतितम ॥ मेन सिम्भुन भो देणों मुक्त समुपलक्ष्यते। हेनेंव माम्ना स॒ देश बाध्ममाहुर्मनोपिण ॥१ परि मेरे पितृगण मुझ पर प्रम्नम्न हैं तो मुझे यह बर दे कि क्रोषधस मैंने धो क्षत्रियों का संहार किया है इस पाप ते मैं मुक्त' हो बाठे प्रोर इन पाँव तात्ताओं में समान, दात, पूजनादि से प्रात्पियों के समस्‍्त पाप धप्ट हों । पितरों ने कहा, ऐसा ही हो । छुदक्षेत्र के उन्हीं इविए पूर्ण पाँच टीों को समस्त पंस्चक कहते हैं। पुरप्रों के राजा ब्ुष्पात के प्रधापी पुत्र सर्वदमन है सरस्वती हट पर यज्ञ झिए्‌। धर्यदमंन बहुत बड़ा विजेता प्रौर सप्राट था जिसको भरत भी कड्या जाता है। पबेदमन मरत में घपते राग्प को सरस्वती भौर मंगा के मध्मवर्ती प्रदेश में स्पापित किया था |




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