राम - चरित - मानस | Ram - Charit - Manas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.159678596071899 GB
कुल पष्ठ :
492
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)राम-चरित-मानस
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शर्ट
जे परदाष लषहिं सहसाषो।
परहित-घृत जिनके मन माषी॥ ४॥
जो दूसरों के दोषों को हजार श्रॉँलों से देखते हैं श्रोर जिनके मन
दूसरों के हितरूपी घृत के लिए मक्खी के समान हैं । धी में पड़ने से
मक्खी मर जाती है । खत भो दूसरों के काम विगाड़ने के लिए भ्रपने
प्राण खो बेठते हैँ ।
तेज कूसानु रोप महिषेसा।
अधघअञ्मवगुन धन धनो धनेसा ॥ ५ ॥
जिनका तेज अ्रग्नि के समान सब का जलानेवाला है, जिनका क्रोध
यभराज के समान सव का मारनेवाल्ा है, जो पाप श्रोर दुगुंणरूपी धन
के कुबेर के समान थनी हैं। ल्
उदय केतु समहित सब होौके।
कुंभ करन सम सोवत नीके॥ ६॥
जिनका उदय सभी के कल्थाण के लिए केतु के समान हैं, केतु का
उदय भ्रमडल--सूचक है,। सलगण कल्याण के लिए श्रमंगल सूचक हे',
श्रांद खलों के उदय से सभी के कल्याण नष्ट हो जाते हैं । उनका सेना
भरत होना कुम्भकर्ण के सोने के समान सभी के कल्याण के लिए है।
पर श्रकाजु लगि तनु परिहरद्दी।
जिमि हिम उपल कृषी दल गरही ॥ ७ ॥
जो दूसरों की बुराई के लिए अपना शरीर तक छोड़ देते है', जिस
प्रकार हिम-बरसाती पत्थर-खेती का नाश करने को स्वयं नह हो जाते है ।
बंद बल जस शेष सरोपा।
सहस बदन बरनइ पर देषा॥८॥
में स्लो की बन्दना करता हूँ, जो क्रोध करने .पर शेष नाग के समान
देते हैं, दूसरों के दुःखों का हजारों मुख्तों से वर्णन करते है' ।
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