श्रीसघ्ङपट्टकः | Shrisangpattak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
136
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जज
स्यास्पा--नियोहा० ॥ यत-पस्मास्कारणात् एगविघा जना एबबिर् गुरु
देवेम्पोपपिकमरयन्ति संत मदहता-अपरतस्प मोइस्प-मोइनीयकर्मणो मुम्मित-
भदास्म्यप्् | छृपम्भूत गुरु ! निर्वाहार्धिन-निर्बाइस्प-उद्रमभरणस्पार्थितम्। पुना
छविम्पूतम्* युपछवैः-मुणछेशै उन््रित-रपक्तम्। धुनः ढिम्धूतम् मश्ञावज्षीठान्यपम्ू-
अद्वात छोरम-आदार। अन्द्रयभ्ध-हुर्ले यस्य स (हम्।) पुना किम्पूतम् ताइ गबणशम
शह्ुणेन गुरुणा फिप्पतुरपाध्ताताविबशेन एद्भुगेन-प्धिप्यहुस्पगुणेन एवविघेन गुरुमा स््त्रा
पॉप-स्पोद्रमरणाप ध्वुण्डीकृत ताइकताइश्मेब घुम्दयते | कपम्भूता खना। बिफ्यात
गृणान्वया अपि बिस्म्पाता।-प्रस्तिद्धा! गुणान्वयों बश्चों येपां ते समुणा।-झुझुलोस्पन्ना
अपि | पुनः किम्मूताः ! सप्रोग्रगच्छप्रदा), छप्त उप्रः-उस्कटो गच्छग्रशो येषां ते ॥ १३॥
पुनरप्पेतवृद्वारमाइ--
दुष्मापा शुझुकर्म सशययबतों समर्मपुद्धिनूणां,
रूादायासपि दुर्दप। शुपगुरु) प्राप्तः स पुष्पेम गेतू
कसु मर स्वष्टित तथा5प्यलममी गइछतस्पिठिम्पाहवा),
के हुमा कमिशाभ्रयेमदि कमाराष्येम कि कुर्मशे ॥ १४॥
ब्यायया--धुष्प्रापा० ॥ गुरुझमसबपकसां-गुरुकरमस्पूदगर्तां तृणां सदर्म
पृद्धि।-प्रधानधर्मयृद्धि दुष्प्रापा गुरुरमस्वात् सद्ध्मपुद्धिन फदाचित् सदयुद्धों जाता
यामपि पुनरपि शुमगुरु) दुरूम!-दुष्प्राप! चेदु-पदि स गुरु। पृण्येन प्राप्त), सपापि-एव
सामप्रीपोगेईपि अम्री भाद्वाः स्वृद्दिस क्चु नाठ-न समर्याः। कपम्मूता सना।
गण्छस्पितिश्पाइता!-गच्छस्पित्या-गष्छमर्यादया ब्याइता/-बश्ती कृता। | एव स्पिते क
पुरुष प्रूम), के पुरुपम् इइ-शगति माथयमद्टि-प्ररस प्रपप्मि, फ़ पुरुपम् माराष्यमहि-
जाराष्पामः हि हमे ॥ १४ ।॥
पझुरप्षामः किछ को5पि रह्रशिद्युक। प्रम्ग्प पेस्ये छणित् ,
हृरबा कृष्मम पश्ठमछ्तितकतिः प्रापक्तराबायेरम् 1
चित्रें सेयगृ्ट ृद्दी घति निखे गचछे झुद्धम्पीयति
रद झड्टीयठि बातिशीयति घुपाम् विश्व बराशैयति ॥ १७ ॥।
घ्यासपा--प्लुर्भाम० ॥ हिलति संमाबनायों को5पि धुम्धामा।-प्षुपपा
पामा-धीषः झुस्घामः एफम्मूवो रहप्षिश्चद्ठ -रहुस्पपाठः सर बेशग्पा माबठपि कृषित्
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