वैदिक वाड्मय का इतिहास भाग २ | A History Of Vedic Literature, Vol. 2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्ष् बेदिक वाकुमय का इतिहास पश्चविश के २१४ प्रपाठक षड्विश के ५ प्रपाठक मन्त्रत्नाझण के २ प्रपाठक छान्दोग्य उप० के ८ प्रपाठक अलानआकाकाशजत्राएलाकक, है ० ये सब मिला कर कभी ४० प्रपाठक का एक द्वी ताण्ल्य या छान्दोग्य ब्राह्मण था। आाचाये शड्डर स्त्रामी के वेदान्तसूत ३। ३॥ २५॥ ३। २। २६॥ ३। २। २६॥ के भाष्य में क्रमशः इस प्रकार लिखा है-- ताण्डिनां'' (मन्त्रसमाम्नायः)--देव सबित+' मन्त्र ब्रा० १।११।१॥ अस्ति ताण्डिनां श्रुतिः--अश्व इब रोमाणि * छा० उप० ८।१३।१॥ ताण्डिनामुपनिषदि--स आत्मा तत्त्वमसि'''छा० उप० ६८७ ॥ इस से प्रकट होता दे कि शड्टर स्त्रामी भी इन दोनों ग्रन्थों को ताणछा सम्बन्धी दी सममता था । ९-दे बत ब्राह्म ण* ग्र न्‍थ प रि मा ण--यह ब्राह्मण बहुत छोटा सा दै। इस में तीन खण्ड हैं। पहले खड में २६, दूमरे में ११, ओर तीसरे में २५ कणिडकाये हैं । कुल मिला कर कगिडका-संख्या ६२ दे | विशो ष ता यें---इस ब्राह्मण में छन्दों का वर्णनविशेष दे । हन्द नामों के निवैचन, भी यहीं मिलते हैं । निक्क ७॥१२, १३॥ में यास्क ने सम्भवतः यहीं से कुछ निवंचन लिए है । भ्राक्सफोड के सूचीपत्र ० ३१८३) पर एक हस्तलिखित ग्रन्थ का वर्णन दै। इस की संख्या ४६६ दे । इस का नाम सामगानां छुन्दः मथवा छन्दोविजिन्ति ( विजिनि ?) है। छन्दो विजिनि नाम पाणिनीय गणपाठ ४॥३।७३॥ में मिलता है| इस इस्तलेख के भारम्भ में यह 'छोक आया हे-- ब्राह्मणात्ताण्डिनश्थेव पिड़छाध्य महात्मनः । निदानादुक्थशास्त्राश्व उन्दसां शानमुद्धतम ॥ जीन जे १ देवतब्राह्मणम्‌--जीवानन्द विद्या सागर, कल्रकत्ता | सन्‌ १८८१ ।




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