जैमिनीय उपनिषद ब्राह्मणम् | Jaiminiy Upanishad Brahmanam

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Jaiminiy Upanishad Brahmanam  by पं. भगवद्दत्त - Pt. Bhagavadatta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आ। / प्रन्ध का पाठ और 5 के पाटमेद अन्यात्तरों में एरियर्पोय फागज पर हैं। ये प्रो० जार्अबेरे वर रमन में किसे रु ये, ४. फापी प्रो० हिटने ने सूज्ष से मिला ली थी । उन्हों ने 0. के पठनः भी दे दिये थे। इसी कापी से यह संस्करण तय्यार किया ग८८ ६५ मूल फ्रव इपिडया आफिस लण्डन के पुस्तकालय में है। हस्तछेस्रों मे ऐसा शीपेक है -- तल्नवकारत्राह्मण उपनिपद्राह्मणम | अनुषाक, खयड झौर फणिडकादि फे दिभाग विपय में भी झर्टल ने यद्द खिसा हैं| “वाक्यों (कणिडकाओों) के अछुः दने में दस्तछेख असावधान आर झसड्ठत दैं। &. अनुवाफ झा ए खण्दविभाग नहीं देता, पसन्‍्ठ॒ प्रत्येक प्रध्याय की फणिडफाशओं पर ऋमशः झटुः देता दे। मेने अठघाफ ओर खयड दिमागों में 5. और ९, की अथवा फशणिडफापरों फे अड्डु में तीनों हस्तलेखें। की साधारण अशुद्धियों झोर विलोपों का लिखना उपयोगी नहीं सममा। भ्रध्याय २४१ से 2. ओर 8. प्रट्टुने का नया प्रकार (करिडफाशों की समाप्ति पर) झआारम्म फरते हें ! तथापि तोन पहली कयिदकाएं (२११-३) छोड़ते हैं, झौर २४ को २ लियतेहं । पर इस के पश्चात्‌ नियमपू्षक अर्थात्‌ २४५८-४५ इत्यादि, लिखकर तृतीय अध्याय फे श्ग्त तक जाते हैं, ३४८५७ ॥ 1) में अछुः देने के एक और क्रम के भी अवशेष हैं। यहां तीसरे अध्याय फी प्रथम तीत कणिडकाओं पर और अड्डों के साथ कऋर्शः ५६, ५७ झौर ध८ छिपा है । 8 मे ३३१८ पर ७०,२२९ पर ७३, ६1३९ पर ७< के अदुः अधिक हैं | इन झन्तिम तोन अ्रजवाक्तों की गएना रुप ही इस अध्याय फे प्रथम तीन से विभिन्न दे।.साथ ही मूल दा कपिडकाओं के क्रम से मी मिम्न है । “तीनों इस्तलेख पकद्दी सदोष मूल से झाए हैं। तोनों में बहुत सामान्य म्रष्टपाठ ६ | विराम, अत्तर-विन्यास ओर सन्धि-सम्पन्धी




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