अंजना | Anjana
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
342
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१६
मिश्रका बोली, तेरी भी बुद्धि पर प्राला-पड़: गया लंगता
'है। अमृत थोड़ा भी हो तो. अमृत अमृत ही है जबकि विप के
बड़े बड़े घड़े भी भरे हों तो -किस मतलब के ?
आअजना न तो वृसनन््ततिलका -का पक्ष ले सकती और न
“मिश्रका का, “उसका तो मौन ही रहना:उचित! है अन्यथा
सखियाँ उसकी खूब गत बनाएँ॥ 5. ..इ1 «४ ५ ५+ 7
! परन्तु अंजना-के मौन, ने पवनंजय के। हृदय में और ही
“विचार को जन्म दिया। उसने सोचा “यह दूसरी सखी मेरी
सुलना बिप के साथ. कर रही. है- फिर भी भ्ंजना मौन
अवश्य इसके मन में विद्य त्प्रभ वसा -हुआ है । यदि इसने मफ्ले
मन: में वसाया होता तो सखी का. मुह बन्द कर देती । उसका
क्रोध भभक - उठा-1: , - 5::.- छः हो
क
कमर से. तलवार खींचकर आगे बढ़ा। 'जिसके मन में
विद्य व्यभ है! उस सखी और उसकी स्वामिनी दोनों के सिर
घड़ से अलग कर डालू 1 इस प्रकार कहता हुआ अंधकार को
चीरता हुआ वह आगे बढ़ा कि प्रहंसित ने उसका हाथ पकड़
'कर रोक दिया ।
यह क्या करता है ?* ्
मुझे.रोक-मत । अपने क्रोध की अग्नि में आ्राहुति देकर ही
मैं शान्त होऊँगा ।
श्वरे, स्त्री अपराधिनी होने पर भी अ्रवध्य है'“““तो यह
अंजना तो निरपराधिनी है। कि,
अंजना निरपराधिनी है ?' बोल मत, व्यर्थ भुझे अधिक
क्रद्धन कर। थ
सत्य कहता हूँ मित्र, अंजना निरपराधिनी है । सखी को
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