अंजना | Anjana

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Anjana by आचार्य श्री हेमचन्द्र - Aacharya Shri Hemchandra

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about आचार्य श्री हेमचन्द्र - Aacharya Shri Hemchandra

Add Infomation AboutAacharya Shri Hemchandra

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
१६ मिश्रका बोली, तेरी भी बुद्धि पर प्राला-पड़: गया लंगता 'है। अमृत थोड़ा भी हो तो. अमृत अमृत ही है जबकि विप के बड़े बड़े घड़े भी भरे हों तो -किस मतलब के ? आअजना न तो वृसनन्‍्ततिलका -का पक्ष ले सकती और न “मिश्रका का, “उसका तो मौन ही रहना:उचित! है अन्यथा सखियाँ उसकी खूब गत बनाएँ॥ 5. ..इ1 «४ ५ ५+ 7 ! परन्तु अंजना-के मौन, ने पवनंजय के। हृदय में और ही “विचार को जन्म दिया। उसने सोचा “यह दूसरी सखी मेरी सुलना बिप के साथ. कर रही. है- फिर भी भ्ंजना मौन अवश्य इसके मन में विद्य त्प्रभ वसा -हुआ है । यदि इसने मफ्ले मन: में वसाया होता तो सखी का. मुह बन्द कर देती । उसका क्रोध भभक - उठा-1: , - 5::.- छः हो क कमर से. तलवार खींचकर आगे बढ़ा। 'जिसके मन में विद्य व्यभ है! उस सखी और उसकी स्वामिनी दोनों के सिर घड़ से अलग कर डालू 1 इस प्रकार कहता हुआ अंधकार को चीरता हुआ वह आगे बढ़ा कि प्रहंसित ने उसका हाथ पकड़ 'कर रोक दिया । यह क्‍या करता है ?* ्‌ मुझे.रोक-मत । अपने क्रोध की अग्नि में आ्राहुति देकर ही मैं शान्त होऊँगा । श्वरे, स्त्री अपराधिनी होने पर भी अ्रवध्य है'“““तो यह अंजना तो निरपराधिनी है। कि, अंजना निरपराधिनी है ?' बोल मत, व्यर्थ भुझे अधिक क्रद्धन कर। थ सत्य कहता हूँ मित्र, अंजना निरपराधिनी है । सखी को




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now