देखना एक दिन | Dekhna Ek Din

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Dekhna Ek Din by श्री नरेश मेहता - Shri Naresh Mehata

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कई बार टठेबिल पर फैली सबेरे की इस धूप में कितना अकेला है पीछे छूट गया साक्ष्य देता चाय का यह खाली कप, कि वह अतिथि सी इसी खिड़की को फ्रेम बना रेम्न्रां के एक चित्र सी बैठी थी । पत्तियों जैसे ओठों पर. चाय की पतली, पारदर्शी छोटी-छोटी भाष उस मुख पर फोमल सी उड़ती रही थी । कई बार व्यक्ति से मधिक तो वस्तुएं भौर क्षण अधिक सोभाग्यशाली होते हैं । देखना, एक दिन | ३७




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