यह पथ बन्धु था | Yah Path Bandhu Tha

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Yah Path Bandhu Tha by श्री नरेश मेहता - Shri Naresh Mehata

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२५ यहू पप बग्यु था मेंद्रा उमकी बैंठकी में टेया रहता था और बिसकी सृरूर मक्षरां में एक प्रति द्विपि हेंश मास्टर साहन के कमरे में भी टेंगो रहतां पी । निष्ठागान व प्णब ब्राह्ममगुरत में पण्शित भीघर याबू का जर्म एक इतिहास टशक के झुप में किस प्रकार हुआ इस पर आइबय बरना व्यय है। क्‍्योंके नार्मेछ एए8 के छिए, उन्होंने जो निबन्ध परीक्षा के समय छिखा था उसम वे सारे भापार मूव तत्व मौजूद थे दवा आगे चसकर उससे इतिहास सिलिया हे गये । इतिहास का प्रभयन नहीं बस्कि उसका निरूपस झाइचर्य की घात भी । अपने राग्य को यौरब मय सिद्ध करमे के क्षिए भ्रीमर बावू ने पाण्डदो ने मजातवास से शंकर मायक्ल सघाटों कौ दक्षिप्र यात्रार्भा के सारे अमियानों का सम्बन्ध इस प्रदेश से जोडा । अपने यहूँ के कासिका के भस्दिर कौ प्रसिद्धि का ऐतिहासिक कारण ये यह मानते ये कि काशिदास ने इसकी स्थापना की बी और इसीप्ििए उनद्रा शाम कालिदास प्रस्चिद्ध हुमा । भारतीय इतिहास की अधिकांदा मद्ृत्यपू् घटताओं का सम्बन्ध किसी न फ्सी रूप में इस प्रदेश से या हो उतके घारभिक कारों क साय सम्बद मिछ्तेया या फिर उनड़े प्रतिफल के साय संयुक्त । इस प्रबार भीघषर बायू की मह ऐतिहासिक कृति व तो असस्प ही कही जा सकती भी भौर म ही प्रामाणिक भी । गौरबसय बह जबष्य थौ सौर (संमबत”) सेशक का भी ममीप्ट मात्र इतना हीठोदा। ऐेकिग इस पुस्तक के कारण जो भी मौतिक्ता या मश्ष तहें उपलम्प हुमा उससे उनके ब्यक्ितत्व में कोई बिकार महीं माया । मे उस दिनों स्वामी जिवेका नेन्द की पुस्तक पड़ा करते थे । बे कब इतिहास और भूगाक्त पड़ते-पड़ाते सा हेत्य धौर कब साहित्य पड़ाते-पढ़ाते बितेकानन्द पर शा जाएंगे इस बारे मे कोई निश्चित ईीं कह उकृता था । ने चाहे अमिक छाकग्रिय त रह हों डकिस्तु धयड़ा के पा गाते जाते थे । इतिहास प्लेल़क भ्रीपर ठारूर कुसौन दो नई हो थे फेकिन कसशीक बाले पवध्स थे । शाम्त एवं सीरस कूमने वा इस स्यगित के बारे में समी की धारणा थी ढ़िकूछ भी हो भौपर बायू णील सम्पत्त जाज्ञाबारी हैं। सेकिस स्वय के भार में उतकी घारभधा यो कि में यह सब हूँ नहीं पर ऐसा आमास देता हूँ । कोई क्यों लह्ीं मानता कि मेँ भी कमी बिदोड कर सकता हूं ? पुस्तकों ने मनेक जभ्पक्त विक्षाओं का उनके मिकृट ब्यगत कर दिया पा | सकूश भौर कस्बे के उलसाठय की अपिकाप्त पुस्तक बे पढ़ चुके थे । एक साथ अनेद् विभिन्त बिपय हि के थे। प्रीयर ठारूर को कोई स्यसन सही था | सेकिस कमी-जमी थे




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