आत्म रहस्य | Aatma Rahasya

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Aatma Rahasya by रतनलाल जैन - Ratanlal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पदाय को दो क्रणी & मनुष्य वे सौमने जय कोई बात होती ह तो वह उस पर विचारता हू । उस बात वी साम हानि एवं गुण दाप पर ध्यान देता ह व श्रनक प्रकार की योजनाए बनाता ह । इन सब वाता का भौतिव पदाय ये बने एजिन में सवधा ग्रभाव हू । अत प्रतन उठता हू कि यह चान व झनुमव अनुष्य में वहा से भाया ? यदि यह कहा जाव कि किसी घटना या पटाथ के समुख उपल्यित हो जान पर मस्तिष्क या घरीर के बिसा भाग स एक प्रकार का सूट्म पटाथ निकलता रहता हू जो विचारने या सोचन का काय वरता हू तो एसी हा में यह मानता होगा विः समय समझ पर भिन्न भिन्न घटनां व बातो के सम्मुख उपम्यित हो जान पर पृथक एथक सत्ता रखन बाले सूक्ष्म पटाथ निकलते रहते हू जो विचारनें प्राटि का काय करते हे । यह भी मानना होगा कि मनुष्य के असर पुषक-पथक सत्ता रखन वाले एसे भसत्यात सृद्रम पटायें है, जो भिन्न भिन्न समय में सोचने का काय वरत है । सूक्ष्म पटाय भिप्त मिन्न घटना व बातां स उत्पन्न हुए ह इसलिए इन पहायों गा काय 4 विचारने वी शली भी भिन्न-भिन्न होगी। भिन्न भिश्न काय के होन स॒ इनमें परस्पर विरोध भी होगा जिसका परिणाम यह होना घाहिय दि विरोधी काय होने से शरीर का एक भाग एक प्रवार का काय कर शोर दूसरा भाग विल्कुत उसके विपरीत विरोबी काय बरे या इनमें परस्पर टक्कर लग जान से य सूक्ष्म पदाय काय क्ति विहीन हा जायें। परन्तु एसा देखन व झनुभव में नहीं श्राता। भनुष्य बरावर सोचता विचारता रहता ह्‌। कभी भी उसकी विचार-श्रक्ति नष्ट नी होती) इसलिए यटी मानना पडगा कि जानन विचारन थी *क्ति बाला एक सरल पटाथ है जिसमें पृथरु-पथक विरोधी भरत नहीं ह और जिसवा बाय सरल व लगातार हांता रहता €। इससे इसी परिणाम पर पहुंचा जाता ह कि मनुष्य के भीतर जानने, घनुभव करन वाला मस्तिष्क से भिन्न अखंड मूल त्तव है!




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