पंचदशी | Panchdashi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
56 MB
कुल पष्ठ :
409
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(४६२) पश्चदशी- [ तच्यविवेक-
३०७
इस प्रकार तत् सी पर्दाक अथोंकों कहकर वादयके अथकों कहते हैं कि
तमोगुणप्रधान, मलिनसखप्रधान, विशुद्धसच्वप्रधानरूप तीन प्रकारकी भी पररुपर
पिरुद्ध २ उस मायाको छोडकर अखेड ( भेद्रहित ) सताविदानंदरूप बक्ष महावाक्यसे
लक्षित होता है अर्थात् जाना जाताहे अथात्त लक्षणावृत्तिसे परबह्म बोध होताहै॥४ द॥
सोधइ्यमित्यादिवाक्येणु विरोधाचसदिदतयो:
त्यागेन भागयोरेक आश्रयों लक्ष्यते यथा ॥ ४७।
कदायित् कोई को कि इस मकार लक्षणावातिते वाकयके अर्थका ज्ञान
कहाँ देखा है इस शकाकी निवृत्तिके लिये कहते ह कि सोय॑ देवदततः € वह यह
दत्त है ) इत्यादि वाक्योंम वह देश वह काल ओर यह दश यह कालरूप विरुद्ध
बर् मोके विरोधत तत् और इदयस शब्दक अथांकी एकता नहीं हो सकती; इससे विरुद्ध
शरहूव भागोंके व्यागसे अथात वह देश कार ओर यह देश काल इसके त्यागसे एक
देवदत्तरूप आश्रय ( देही / जते रखा जाता है अथात जो शराश्यथारों दोनों देश
कालोम एक है उसका बोध होता है उससे अभिन्न पह है ऐसी अमेद बुद्धि होतीं
,; है; भावाथ यह है कि सोयम इत्यादि वाक्योंगे जैसे ततू और अयथके विरोधसे
| | विरुद्ध २ भागोंके त्यागस जसे एक देवदत जाना जाता है
मायाविश्रे विह्ययेवस्म॒ुपाची परजीवयो
अखंड सबिदानंद पर ब्रह्य लक्ष्यते
अब इृष्टतकों कहकर दाष्टाीतिककों कहते है कि सोड्य देवदत्त:' इस वाक्यके
ही अनुसार परतह्म जीवात्माकझी उपाय जो माया ओर अविदया है उन पूवाक्त
माया और आविद्याकों स्यागकर अखंड साजच्चदानद € भंदराहेत परबह्य ) महावाक्योसे
लखा जाताह अथांत जीवकी आविया ओर परखह्मकी मायाके स्थागसे सचिदानंद-
रूप बह्मका ज्ञान हो जाता है.भावाथ यह है के बस ही परअह्म,जावकी माया अविया
रूप उपधियोंको स्थागकर महावाद्योसि एक साबिदानंदरूप अहम लखा जाताहै ४८ |
सविकल्पस्य लक्ष्यत्वे लक्ष्यस्य स्पादवस्तुता ॥|
निविकल्पस्य लक्ष्यत्वं न हुई न व संभवि ॥ ४९ ॥
कदावित् कोई वादी शंका करे कि महावाक्योंसे जो ब्रह्म रछूखा जाता है यह
सविकल्प (विकल्पसहित ) है कि निर्विकल्प ? प्रथम पक्षमें दोष कहते है कि,
विपरीतरूप माने नाम जाति आदि सहित जो हो उसे सविकृलप ऋहते हैं उसकों
म्रहावाक्योंका लक्ष्य ( जानने योग्य ) मानोंगे तो महावाक्योंके लक्ष्यकों अवस्तुता
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