मालिक और मजदूर | Maalik Aur Majdur

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Maalik Aur Majdur by लिप्रो टालस्टाय - Lipro Taalastay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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एक भीपण अन्याव १६ कृषि स्कूल खुलयाने, श्स्पताला की संख्या यढ़वाने, टेक्सों की बकाया माफ कखान, कारगर्ना की कड़ी देस माल करवाने और घायल मजदूरा का मुआवजा दिलयाने, जमान की पैमायश करवाते, अमान रारीदने के लिए इृपि बकों से किसानों का सहायता दिलवाने आदि कामों की कोशिश करते हैं । पर एक बार कल्पना काजिए लाखों लागों दे साप्र के की । इद्ध स्त्री पुस्प प्रीर उच्चे श्रभात वे मारे मर रहे है । शक्ति से अधिक काम करने और पयांत भोजन ने मिलने के करण मरो वाल की सरथका कस नहां है। उल्पना काजिए कि जमाने के अ्रभाव में देहात ते लागों को फिस कदर सुलामी और शपमानों का शिक्षर दाना पड़ रह है, उनकी शक्ति का दुग्पगोग हो रहा है शोर डाई अनावश्यक मुसोरे भेलनी पड़ रही हैं | ऐसी दशा मे यह स्पष्ट है कि यरि लोगां की सेशा का नाम लेनेत्रा्ला वे सब्र उद्योग सफल द जाय ता मी वह सागर में एक हिंदु वे बरानर ही दोगा। लगा वी सवाई का दम मरने वाले लोगों में बुछ ऐसे भी हैं, जो गुण और परिमाण दोर्ना की दृष्टि से महत्व दंत परिय्तनों की योजना करते हैं | श्रोर इस ब(त की तनिक भी परवाह नहीं कस्‍्ते कि लाखा मचदूर जमोन पर भूस्वामियों के कन्ता जमा लने के कारण गुलामी में सड़ रहे हैं| इतना ही नहीं, उनमें से बुछ आगे बढ़े चढ़े सुधारक यह पसंद वरेंग कि लोगां की मुखेवते और बढ़ जाय ताकि अपने पुराने देहाती जायन वे वसले कारसाना का सुधा हुआ जीतने अहण करने के लिए, विपश दोना पड़े | ऐमे लोग की प्रिचार दीवता आइसयजनक है। वे अपने दिमाग से छुछ साच नहीं सकते बल्कि पश्चिम वा श्रधानुक्रण करना चाहते हैं | उनसे ददक पी करोर्ता और निर्न्यता ्रौर भी आश्यपजनक है एक समय था ज३ परमात्मा के नाम पर मनुष्यों का लाजां की तादाद में मारा गया, सताया गया, पासी पर लथ्काया गधा, और कत्ल




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